Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम्
उदा०- -(ठञ्) शाकले भवा शाकलिकी । शाकल नामक वाहीक-ग्राम में रहनेवाली नारी - शाकलिकी । (ञिठ) शाकले भवा शाकलिका । शाकलं नामक वाहीक-ग्राम में रहनेवाली नारी-शाकलिका । (ठञ्) मान्यवे भवा मान्थविकी । मान्थव नामक वाहीक-ग्राम में रहनेवाली नारी - मान्थविकी । ( ञिठ ) मान्यवे भवा मान्यविका । मान्थव नामक वाहक- ग्राम में रहनेवाली नारी- मान्थविका ।
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सिद्धि-शाकलिकी । शाकल + ङि+ठञ् । शाकल्+इक । शाकलिक + ङीप् । शाकलिकी+सु । शाकलिकी ।
यहां सप्तमी-समर्थ, वाहीक - ग्रामवाची 'शाकल' शब्द से इस सूत्र से शेष अर्थों में 'ठञ्' प्रत्यय है। 'ञिठ' प्रत्यय करने पर - शाकलिका । ऐसे ही मान्थविकी, मान्थविका । शेष कार्य पूर्ववत् है ।
विशेष- गंधार और वाहीक दोनों मिलकर उदीच्य कहलाते थे । सिन्धु से शतद्रु तक का प्रदेश वाहीक था जिसके अन्तर्गत मद्र, उशीनर और त्रिगर्त ये तीन मुख्य भाग थे (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ४२ ) ।
ठञिठ-विकल्पः
(२७) विभाषोशीनरेषु । ११७ ।
प०वि०-विभाषा १।१ उशीनरेषु ७ । ३ ।
अनु०-शेषे, वृद्धात्, ठञ्ञिठौ, वाहीकग्रामेभ्य इति चानुवर्तते । अन्वयः-यथासम्भव०उशीनरेषु वृद्धेभ्यो वाहीकग्रामेभ्यः शेषे विभाषा
ठञिठौ ।
अर्थ: यथासम्भवविभक्तिसमर्थेभ्य उशीनरेषु वर्तमानेभ्यो वृद्धसंज्ञकेभ्यो वाहीकग्रामवाचिभ्यः प्रातिपदिकेभ्यो विकल्पेन ठञ्ञिठौ प्रत्ययौ भवतः, पक्षे च छः प्रत्ययो भवति ।
उदा०- ( ठञ् ) आहजाले भवा आहजालिकी । (ञिठः) आहजाले भवा आह्वजालिका । (छ: ) आह्नजाले भवा आह्रजालीया । (ठञ् ) सौदर्शने भवा सौदर्शनिकी । (ञिठः) सौदर्शनिका । (छः) सौदर्शयनीया ।
आर्यभाषाः अर्थ-यथासम्भव- विभक्ति - समर्थ (उशीनरेषु) उशीनर - भाग में विद्यमान (वृद्धात्) वृद्धसंज्ञक (वाहीकग्रामेभ्यः) वाहीक ग्रामवाची प्रातिपदिकों से (विभाषा) विकल्प से (ठञ्ञिठौ) ठञ् और ञिठ प्रत्यय होते हैं। विकल्प पक्ष में छ प्रत्यय होता है।
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