Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः ठञ्
(४) अध्यायेष्वेवर्षेः ।६६। प०वि०-अध्यायेषु ७।३ एव अव्ययपदम्, ऋषे: ५।१।
अनु०-तत्र, भव:, तस्य, व्याख्याने, इति च, व्याख्यतव्यनाम्न:, ठञ् इति चानुवर्तते।
अन्वय:-तस्य, तत्र च व्याख्यातव्यनाम्न ऋषेर्व्याख्याने भव इति ठञ् अध्यायेषु।
अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थात्, तत्र इति च सप्तमीसमर्थाद् व्याख्यातव्यनामवाचिन ऋषिविशेषवाचिन: प्रातिपदिकाद् यथासंख्यं व्याख्याने भव इति चार्थे ठञ् प्रत्ययो भवति, अध्यायेष्वभिधेयेषु। अत्र साहचर्याद् ऋषिशब्देन तत्प्रोक्तो ग्रन्थ उच्यते।।
उदा०-(षष्ठी) वसिष्ठेन प्रोक्तो ग्रन्थो वसिष्ठः। वसिष्ठस्य व्याख्यानोऽध्याय:-वासिष्ठिकः। (सप्तमी) वसिष्ठे भवोऽध्याय:वासिष्ठिकः।
आर्यभाषा: अर्थ- (तस्य) षष्ठी-समर्थ (तस्य) और (तत्र) सप्तमी-समर्थ (व्याख्यातव्यनाम्न:) व्याख्यतव्य-नामवाची (ऋषे:) ऋषिविशेष वाचक प्रातिपदिक से यथासंख्य (व्याख्याने) व्याख्यान (च) और (भव:) भव (इति) इस अर्थ में (ठञ्) ठञ् प्रत्यय होता है (अध्यायेषु) यदि वहां अध्याय अर्थ अभिधेय हो। यहां साहचर्य से ऋषि शब्द से उसके द्वारा प्रोक्त ग्रन्थ उसी ऋषि के नाम से कहा जाता है।
उदा०-(षष्ठी) वसिष्ठ ऋषि के द्वारा प्रोक्त ग्रन्थ-वसिष्ठ। वसिष्ठ ग्रन्थ का व्याख्यान आत्मक अध्याय-वासिष्ठिक। (सप्तमी) वसिष्ठ ग्रन्थ में होनेवाला अध्याय-वासिष्ठिक। ऐसे ही-वैश्वामित्रिक, दायानन्दिक आदि पदों की प्रवृत्ति समझें।
सिद्धि-वासिष्ठिकः । वसिष्ठ+ ङस्/डि+ठञ् । वासिष्ठ+इक । वासिष्ठिक+सु । वासिष्ठिकः।
यहां षष्ठी/सप्तमी-समर्थ, व्याख्यातव्य-नाम, ऋषि ग्रन्थवाची वसिष्ठ' शब्द से व्याख्यान/भव अर्थ में इस सूत्र ठञ्' प्रत्यय है। पूर्ववत् ' के स्थान में इक्’ आदेश, अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-वैश्वामित्रिकः, दायानन्दिकः।
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