Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
३५८
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-तत्र, भव:, वर्गान्तादिति चानुवर्तते। अन्वय:-तत्र वर्गान्ताद् अशब्दे भवोऽन्यतरस्यां यत्खौ ।
अर्थ:-तत्र इति सप्तमीविभक्तिसमर्थाद् वर्गान्तात् प्रातिपदिकाच्छब्दवर्जिते भव इत्यस्मिन्नर्थे विकल्पेन यत्खौ प्रत्ययौ भवतः, पक्षे च छ: प्रत्ययो भवति।
उदा०-(यत्) वासुदेववर्गे भवो वासुदेववर्य:। (ख:) वादेववर्गीण: । (छ:) वासुदेववर्गीय: । (यत्) युधिष्ठिरवर्गे भवो युधिष्ठिरवर्यः । (ख:) युधिष्ठिरवर्गीण: । (छ:) युधिष्ठिरवर्गीय: ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्र) सप्तमी-विभक्ति-समर्थ (वर्गान्तात्) वर्ग-अन्तवाले प्रातिपदिक से (अशब्दे) शब्द-वर्जित (भवः) भव अर्थ में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (यत्खौ ) यत् और ख प्रत्यय होते हैं और पक्ष में छ प्रत्यय होता है।
उदा०-(यत्) वासुदेव कृष्णा के वर्ग (पक्ष) में होनेवाला-वासुदेववर्य। (ख) वासुदेववर्गीण। (छ) वासुदेववर्गीय। (यत्) युधिष्ठिर के वर्ग में होनेवाला-युधिष्ठिरवर्य। (ख) युधिष्ठिरवर्गीण। (छ) युधिष्ठिरवर्गीय।
सिद्धि-(१) वासुदेववर्य: । यहां सप्तमी-समर्थ, वर्गान्त वासुदेववर्ग' शब्द से भव अर्थ में इस सूत्र से यत्' प्रत्यय है।
(२) वासुदेववर्गीणः। यहां पूर्वाक्त वासुदेव' शब्द से भव अर्थ में इस सत्र से 'ख' प्रत्यय है। 'आयनेय०' (७।१।२) से ख्' के स्थान में 'ईन्' आदेश और 'अट्कुप्वा' (८।४।२) से णत्व होता है।
(३) वासुदेववर्गीय:-यहां पूर्वोक्त वासुदेव' शब्द से भव अर्थ में विकल्प पक्ष में इस सूत्र से छ' प्रत्यय है। पूर्ववत् छ' के स्थान में 'ईय्' आदेश होता है। ऐसे ही युधिष्ठिरवर्य:' आदि।
यहां शब्द-अर्थ का प्रतिषेध किया गया है अत: शब्द-अर्थ में पूर्व सूत्र से 'छ' प्रत्यय ही होता है-कवर्गीयो वर्ण: इत्यादि। कन्
(१३) कर्णललाटात् कनलङ्कारे।६५ । प०वि०-कर्ण-ललाटात् ५।१ कन् ११ अलङ्कारे ७।१।
स०-कर्णश्च ललाटं च एतयो: समाहार: कर्णललाटम्, तस्मात्कर्णललाटात् (समाहारद्वन्द्वः)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org