Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी प्रवचनम्
अर्थः- यथासम्भवविभक्तिसमर्थात् कन्थाशब्दात् प्रातिपदिकात् शेषेष्वर्थेषु ठक् प्रत्ययो भवति ।
उदा० - कन्थायां भव: कान्थिक: ।
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आर्यभाषाः अर्थ-यथासम्भव विभक्ति - समर्थ ( कन्थायाः ) कन्था प्रातिपदिक से (शेषे) शेष अर्थों में (ठक्) ठक् प्रत्यय होता है।
उदा०-कन्थायां भव: कान्थिक: । कन्था = गुदड़ी में रहनेवाला - कान्थिक (तपस्वी) । सिद्धि - कान्यिकः । कन्था + ङि+ठक् । कान्थ्+इक । कान्थिक+सु । कान्थिकः ।
यहां सप्तमी-समर्थ 'कन्था' शब्द से भव शेष अर्थ में इस सूत्र से 'ठक्' प्रत्यय है। 'ठेस्येकः' (७1३1५०) से 'ठू' के स्थान में 'इक्' आदेश, 'किति च' (७।२1११८) से अंग को आदिवृद्धि और 'यस्येति च . ( ६ । ४ । १४८) से अंग के आकार का लोप होता है।
वुक्
( १२ ) वर्णो वुक् । १०२ ।
प०वि० - वर्णौ ७ ।१ वुक् १ । १ ।
अनु० - शेषे, कन्याया इति चानुवर्तते । अन्वयः - यथासम्भव०वर्णौ कन्यायाः शेषे वुक् ।
अर्थः-यथासम्भवविभक्तिसमर्थात् वर्णौ-वर्णुदेशवाचिन: कन्थाशब्दात् प्रातिपदिकात् शेषेष्वर्थेषु वुक् प्रत्ययो भवति । वर्णुर्नाम नदः, तत्समीपो देशो वर्णुः ।
उदा० - कन्यायां भव: कान्यकः ।
आर्यभाषाः अर्थ-यथासम्भव विभक्ति-समर्थ (वर्णों) वर्णु देशवाची (कन्याया:) कन्था प्रातिपदिक से (शेषे) शेष अर्थी में (वुक) वुक् प्रत्यय होता है।
उदा०-कन्थायां भव: कान्यकः । वर्णु देश की कन्था - गुदड़ी में रहनेवाला अर्थात् उसे धारण करनेवाला-कान्थक !
सिद्धि-कान्थकः । कन्था + ङि+बुक् । कान्थ्+अक । कान्थक+सु । कान्थकः ।
यहां वर्णुदेशवाची 'कन्था' शब्द से 'भव' शेष अर्थ में इस सूत्र से 'वुक्' प्रत्यय है ! 'युवोरनाक (७ 1818) से 'तु' के स्थान में 'अक' आदेश, 'किति च' (७१२/१९८) से अंग को आदिवृद्धि और 'यस्येति च' (६ । ४ । १४८) से अंग के आकार का लोप होता है !
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