Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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चतुर्थाध्यायस्य प्रथमः पादः अष्टाध्यायी में मद्र और भद्र दोनों पर्यायवाची शब्द हैं (२,३,७३/५।४।६७) मद्रकार का ही दूसरा नाम भद्रकार ज्ञात होता है। सम्भव है घग्घर के तट पर बीकानेर के उत्तर-पूर्वी कोने में स्थित भद्र नामक स्थान मद्रकारों की प्राचीन राजधानी रही हो (पाणिनिकालीन भारतवर्ष)।
(४) युगन्धर-युगन्धर कहीं यमुना का तटवर्ती (राज्य) था। यह राज्य सम्भवत: अम्बाला जिले में सरस्वती से यमुना तक फैला हुआ था (पाणिनिकालीन भारतवर्ष)। जगाधरी युगन्धर का अपभ्रंश ज्ञात होता है।
(५) भूलिङ्ग-तोलेमी ने लिखा है कि अरावली के उत्तर-पश्चिम में बोलिंगाई जाति रहती थी। इनकी पहचान भूलिङ्गों से हो सकती है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष)।
(६) प्रत्यग्रथ-मध्यकालीन कोशों के अनुसार पंचाल का ही दूसरा नाम प्रत्यग्रथ था, जिसकी राजधानी अहिच्छत्रा थी। प्रत्यग्रथ जनपद में बहनेवाली नदी रथस्था (वर्तमान रामगंगा) थी। (पाणिनिकालीन भारतवर्ष)।
(७) कलकूट-कालकूट ठीक टोंस (तमसा) और यमुना के प्रदेश (देहरादून, कालसी) में पड़ता है। यह यमुना. की उपरली धारा का यामुन प्रदेश था। अथर्ववेद में हिमालय पर उत्पन्न होनेवाले यामुन अंजन का उल्लेख है (अथर्व० ४।९।१०) । अंजन के कारण यामुन पर्वत का नाम कालकूट या काला पहाड़ होना स्वाभाविक था (पाणिनिकालीन भारतवर्ष)।
(८) अश्मक-अश्मक जनपद की राजधानी अन्य ग्रन्थों के अनुसार प्रतिष्ठान (गोदावरी के किनारे आधुनिक पैठण) थी। इससे गोदावरी के सह्याद्रि पर्वत-शृंखला तक अश्मक जनपद का विस्तार ज्ञात होता है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष)। तद्राजसंज्ञा
(१) ते तद्राजाः ।१७२। प०वि०-ते ११३ तद्राजा: १।३ । अनु०-जनपदशब्दात्, क्षत्रियाद् अञ् इति चानुवर्तते।
अर्थ:-'जनपदशब्दात् क्षत्रियाद' (४।१।१६६) इत्यत: प्रभृति ये प्रत्ययाविहितास्ते तद्राजसंज्ञका भवन्ति।
उदा०-पाञ्चालः, पाञ्चालौ, पञ्चाला:। यहां 'जनपदशब्दात् क्षत्रियाद' (४।१।१६६) से अपत्य अर्थ में तद्राज संज्ञक अञ् प्रत्यय है। बहुवचन की विवक्षा में तद्राजस्य बहुषु तेनैवास्त्रियाम् (२।४ ।६२)
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