Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् भर्ग । करूष । केकय । कश्मीर । साल्व । सुस्थाल । उरस । कौरव्य । इति भर्गादयः ।। यौधेय । शौभ्रेय । शौक्रेय। ग्रावाणेय । वार्तेय । धार्तेय। त्रिगर्त । भरत। उशीनर। इति यौधेयादयः ।।
आर्यभाषा: अर्थ-(तस्य) षष्ठीसमर्थ (क्षत्रियात्) क्षत्रियवाची (जनपदशब्दात्) जनपद-शब्द (प्राच्यभगदियौधेयादिभ्यः) प्राच्य भगादि और यौधेय आदि प्रातिपदिकों से (अपत्यम्) अपत्य अर्थ में विहित (तद्राजस्य) तद्राज-संज्ञक प्रत्यय का (लुक्) लुक (न) नहीं होता है (स्त्रियाम्) यदि वहां स्त्री-अपत्य अर्थ अभिधेय हो।
उदा०-(प्राच्य:) पञ्चालानामपत्यं स्त्री-पाञ्चाली। पञ्चाल नामक क्षत्रियों की पुत्री-पाञ्चाली। विदेहानामपत्यं स्त्री-वैदेही। विदेह नामक क्षत्रियों की पुत्री-वैदेही। अङ्गानामपत्यं स्त्री-आङ्गी। अङ्ग नामक क्षत्रियों की पुत्री-आङ्गी। बङ्गानामपत्य स्त्री-बाङ्गी। बङ्ग नामक क्षत्रियों की पुत्री-बाङ्गी। मगधानामपत्यं स्त्री-मागधी। मगध नामक क्षत्रियों की पुत्री-मागधी। (भर्गादिः) भर्गाणामपत्यं स्त्री-भार्गी। भर्ग नामक क्षत्रियों की पुत्री-भार्गी। करूषाणामपत्यं स्त्री-कारूषी। करूष नामक क्षत्रियों की पुत्री-कारूषी। केकयानामपत्यं स्त्री-कैकेयी। केकय नामक क्षत्रियों की पुत्री-कैकेयी। (यौधेयादि:) यौधेयानामपत्यं स्त्री-यौधेयी। यौधेय नामक क्षत्रियों की पुत्री-यौधेयी। शौभ्रेयाणामपत्यं स्त्री-शौभ्रेयी । शौभ्रेय नामक क्षत्रियों की पुत्री-शौभ्रेयी । शौक्रेयाणामपत्यं स्त्री-शौक्रेयी। शौक्रेय नामक क्षत्रियों की पुत्री-शौक्रेयी।
सिद्धि-पाञ्चाली। पञ्चाल+आम्+अञ् । पाञ्चाल+अ। पाञ्चाल। पाञ्चाल+डीप् । पाञ्चाल+ई। पाञ्चाली+सु। पाञ्चाली।
यहां षष्ठीसमर्थ क्षत्रियवाची जनपद शब्द 'पञ्चाल' प्रातिपदिक से जनपदशब्दात क्षत्रियादञ्' (४।१।१६६) से 'अञ्प्रत्यय है। 'अतश्च' (४।१।१७५) से इस अ-प्रत्यय का लुक् प्राप्त था। इस सूत्र से स्त्री-अपत्य की विवक्षा में लुक् का प्रतिषेध किया गया है। ऐसे ही-वैदेही आदि।
विशेष-पञ्चाल, विदेह, अङ्ग, बङ्ग और मगध ये भारतवर्ष के प्राचीन प्राच्य क्षत्रिय जनपद हैं। इनका परिचय निम्नलिखित है
(१) पञ्चाल-यमुना और गंगा के मध्य का भू-भाग। राजा द्रुपद के समय में यह दक्षिण में चर्मण्वती (चम्बल) के तट से उत्तर में हरद्वार तक फैला हुआ था (शब्दार्थ कौस्तुभ)।
(२) विदेह-मगध के उत्तर-पूर्व स्थित देश का नाम । इसकी राजधानी मिथिलापुरी थी जिसे जनकपुर भी कहते हैं (शब्दार्थ कौस्तुभ)।
(३) अङ्ग-श्री गंगा के दाहिने तट पर स्थित प्राचीन एक प्रसिद्ध राज्य। इस राज्य की राजधानी का नाम चम्पा नगरी थी। चम्पा का दूसरा नाम अनंगपुरी भी था।
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