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________________ १६२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् भर्ग । करूष । केकय । कश्मीर । साल्व । सुस्थाल । उरस । कौरव्य । इति भर्गादयः ।। यौधेय । शौभ्रेय । शौक्रेय। ग्रावाणेय । वार्तेय । धार्तेय। त्रिगर्त । भरत। उशीनर। इति यौधेयादयः ।। आर्यभाषा: अर्थ-(तस्य) षष्ठीसमर्थ (क्षत्रियात्) क्षत्रियवाची (जनपदशब्दात्) जनपद-शब्द (प्राच्यभगदियौधेयादिभ्यः) प्राच्य भगादि और यौधेय आदि प्रातिपदिकों से (अपत्यम्) अपत्य अर्थ में विहित (तद्राजस्य) तद्राज-संज्ञक प्रत्यय का (लुक्) लुक (न) नहीं होता है (स्त्रियाम्) यदि वहां स्त्री-अपत्य अर्थ अभिधेय हो। उदा०-(प्राच्य:) पञ्चालानामपत्यं स्त्री-पाञ्चाली। पञ्चाल नामक क्षत्रियों की पुत्री-पाञ्चाली। विदेहानामपत्यं स्त्री-वैदेही। विदेह नामक क्षत्रियों की पुत्री-वैदेही। अङ्गानामपत्यं स्त्री-आङ्गी। अङ्ग नामक क्षत्रियों की पुत्री-आङ्गी। बङ्गानामपत्य स्त्री-बाङ्गी। बङ्ग नामक क्षत्रियों की पुत्री-बाङ्गी। मगधानामपत्यं स्त्री-मागधी। मगध नामक क्षत्रियों की पुत्री-मागधी। (भर्गादिः) भर्गाणामपत्यं स्त्री-भार्गी। भर्ग नामक क्षत्रियों की पुत्री-भार्गी। करूषाणामपत्यं स्त्री-कारूषी। करूष नामक क्षत्रियों की पुत्री-कारूषी। केकयानामपत्यं स्त्री-कैकेयी। केकय नामक क्षत्रियों की पुत्री-कैकेयी। (यौधेयादि:) यौधेयानामपत्यं स्त्री-यौधेयी। यौधेय नामक क्षत्रियों की पुत्री-यौधेयी। शौभ्रेयाणामपत्यं स्त्री-शौभ्रेयी । शौभ्रेय नामक क्षत्रियों की पुत्री-शौभ्रेयी । शौक्रेयाणामपत्यं स्त्री-शौक्रेयी। शौक्रेय नामक क्षत्रियों की पुत्री-शौक्रेयी। सिद्धि-पाञ्चाली। पञ्चाल+आम्+अञ् । पाञ्चाल+अ। पाञ्चाल। पाञ्चाल+डीप् । पाञ्चाल+ई। पाञ्चाली+सु। पाञ्चाली। यहां षष्ठीसमर्थ क्षत्रियवाची जनपद शब्द 'पञ्चाल' प्रातिपदिक से जनपदशब्दात क्षत्रियादञ्' (४।१।१६६) से 'अञ्प्रत्यय है। 'अतश्च' (४।१।१७५) से इस अ-प्रत्यय का लुक् प्राप्त था। इस सूत्र से स्त्री-अपत्य की विवक्षा में लुक् का प्रतिषेध किया गया है। ऐसे ही-वैदेही आदि। विशेष-पञ्चाल, विदेह, अङ्ग, बङ्ग और मगध ये भारतवर्ष के प्राचीन प्राच्य क्षत्रिय जनपद हैं। इनका परिचय निम्नलिखित है (१) पञ्चाल-यमुना और गंगा के मध्य का भू-भाग। राजा द्रुपद के समय में यह दक्षिण में चर्मण्वती (चम्बल) के तट से उत्तर में हरद्वार तक फैला हुआ था (शब्दार्थ कौस्तुभ)। (२) विदेह-मगध के उत्तर-पूर्व स्थित देश का नाम । इसकी राजधानी मिथिलापुरी थी जिसे जनकपुर भी कहते हैं (शब्दार्थ कौस्तुभ)। (३) अङ्ग-श्री गंगा के दाहिने तट पर स्थित प्राचीन एक प्रसिद्ध राज्य। इस राज्य की राजधानी का नाम चम्पा नगरी थी। चम्पा का दूसरा नाम अनंगपुरी भी था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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