Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-प्राग्दीव्यतोऽण, तेन नक्षत्रेण, युक्त:, काल:, लुप् इति चानुवर्तते।
___ अन्वय:-तेन नक्षत्रेण श्रवणाश्वत्थाभ्यां युक्त: काल: प्राग्दीव्यतोऽण् लुप् संज्ञायाम्।
अर्थ:-तेन-इति तृतीयासमर्थाभ्यां नक्षत्रवाचिभ्यां प्रातिपदिकाभ्यां युक्त इत्यस्मिन्नर्थे विहितस्य प्राग्दीव्यतीयस्याण्-प्रत्ययस्य लुब् भवति, योऽसौ युक्त: कालश्चेत् स भवति, संज्ञायां गम्यमानायाम्।
उदा०-श्रवणेन युक्त: काल:-श्रवणा रात्रिः। अश्वत्थेन युक्त: काल:-अश्वत्थो मुहूर्तः । अश्वत्थ:-अश्विनी।
आर्यभाषा: अर्थ-तिन) तृतीया-समर्थ (नक्षत्रेण) नक्षत्रवाची (श्रवणाश्वत्थाभ्याम्) श्रवण और अश्वत्थ प्रातिपदिकों से (युक्तः) जुड़ा हुआ अर्थ में (प्राग्दीव्यत:) प्राग्दीव्यतीय (अण) अण् प्रत्यय का (लुप्) लोप होता है (काल:) जो युक्त है यदि वह काल हो और (संज्ञायाम्) यदि वहां संज्ञा अर्थ की प्रतीति हो।
उदा०-श्रवणेन युक्त: काल:-श्रवणा रात्रिः। श्रवण नक्षत्र से युक्त-श्रवणा रात्रि विशेष । अश्वत्थेन युक्त: काल:-अश्वत्थो मुहूर्तः । अश्वत्थ अश्विनी नक्षत्र से युक्त-अश्वत्थ चराचर मुहूर्त (छ: नक्षत्रों की संज्ञाविशेष)।
सिद्धि-श्रवणा। श्रवण+टा+अण। श्रवण+। श्रवण+टा। श्रवणा+सु ।
श्रवणा।
यहां नक्षत्रवाची 'श्रवण' शब्द से युक्त (काल) अर्थ में विहित प्राग्दीव्यतीय 'अण्’ प्रत्यय का संज्ञा अर्थ में इस सूत्र से लुप होता है। लुबविशेषे (४।२।४) से अविशेष अर्थ में प्रत्यय का लुप् कहा गया था, यहां विशेष अर्थ में लुप नहीं होता है, अत: यह कथन किया गया है। 'अण्' प्रत्यय के लुप् होने पर स्त्रीलिङ्ग की विवक्षा में 'अजाद्यतष्टाप (४।१।४) से 'टाप्' प्रत्यय होता है। ऐसे ही-अश्वत्थो मुहूर्तः । छ:
(४) द्वन्द्वाच्छः।६। प०वि०-द्वन्द्वात् ५।१ छ: १।१। अनु०-तेन, नक्षत्रेण, युक्तः, काल इति चानुवर्तते।
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