Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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जन्म स्थान
राजगृह पद्मावती
माता
पिता
सुमित्र
गति
मोक्ष गौतम
गोत्र
जिनान्तर जिनचक्रीदशान्तर निष्क्रमण दो उपवास के साथ केवलज्ञान
निलगुफा उद्यान
छद्मस्थकाल ग्यारहमास श्रमण श्रमणियाँ
२३.
गण
१८ . श्रमणपर्याय
७५०० वर्ष कुमारत्व
७५०० वर्ष राज्यकाल
१५००० वर्ष सर्वायु
३०००० सिद्धि स्थल
सम्मेत शिखर अन्तक्रिया
मासोपवास से २४. एक हजार श्रमणों के साथ निर्वाण
(आव म. २०८-२१४-) इसके अतिरिक्त भाष्यों चूणियों एवं टीकाओं में भ. मुनिसुव्रत विषयक निम्न उल्लेख प्राप्य हैंभगवान् मुनिसुव्रत के शिष्य खंदक ने देव बन नगर को जलाया (ब्यव. भा. १०; ५८९)
भृगुकच्छ नगर में भगवान मुनिसुव्रत का बार बार आगमन होता था अतः वहाँ के देवता प्रायश्चित बताने में समर्थ थे (व्य. भा. ३, पृ. १३७) ।
जीतकल्प भाष्य में भ. मुनिसुव्रत के खंदक आदि पांचसो शिष्यों की घटना का उल्लेख मिलता है । (जीत. भा. २४९८)
आवश्यक चूणि में वैशाली में भगवान मुनिसुव्रत के स्तूप का उल्लेख है । (आव. चू. ५६७) भ. मुनिसुव्रत का श्रावस्ती में आगमन और खंदक आदि की दीक्षा का उल्लेख मिलता है । (उत्त. चू. पृ. ७३) नन्दीसूत्र की गाथा १९ में भ. मुनिसुव्रत का उल्लेख हुआ है । (नन्दी गा. १९) वैशाली में कुलबालुक ने मुनिसुव्रत स्वामी की पादुका स्तूप बनाया था । (नन्दी म.)
आचारांग की शीलांकाचार्य की टीका में भ. मुनिसुव्रत के द्वारा घोड़े को प्रतिबोध देने का उल्लेख हुआ है। (आ. शी. पृ. १८३)
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