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गुणों की मधुर महक
• उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि
नन्हें से बीज में विराट् वृक्ष का अस्तित्व छिपा रहता हैं। काली-कलूटी सीप में चमचमाता मोती रहता हैं। घनघोर बादलों में पानी का सागर लहलहाता हैं। वैसे ही व्यक्ति में व्यक्तित्व छिपा रहता हैं। महापुरुषों के सम्पर्क से उस व्यक्तित्व में निखार आता हैं। एक दिन संसार जिसे सामान्य व्यक्ति समझता हैं, वही व्यक्ति योग्य निमित्त पाकर जन-जन का आराध्य केन्द्र बन जाता हैं।
महासती चम्पाकुंवर जी भारत के उस रंगीले प्रदेश में जन्मी जिसे लोग राजस्थान के नाम से जानते पहचानते हैं। राजस्थान की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परम्पराएं अपने ढंग की अनूठी हैं। जहां कला और साहित्य का मधुर संगम हैं। यहां की धरती मैदानी पहाड़ी और रेतीले टीलों से मण्डित है। रेतीले टीलों पर उभरती हुई लहरों को निहारकर नेत्र कभी थकते नहीं। पहाड़ी धरती जहां दृढ़ता और स्थिरता की प्रतीक हैं वहां रेतीली धरती लचीलेपन की द्योतक हैं। उसी धरती में चम्पा कुंवर जी का जन्म हुआ। इसीलिए वे कठोर भी थी, और मृदु भी थी।
जीवन के ऊषा काल में ही संयम साधना की ओर उन्होंने मुस्तैदी से कदम बढ़ाये और निरन्तर आगे बढ़ती रही जिससे वे जन-जन की श्रद्धा केन्द्र बन गई।
___आज भले ही उनका भौतिक देह हमारे बीच नहीं हैं किन्तु यशः शरीर से वे आज भी हमारे बीच हैं और सदा-सर्वदा वे जीवित रहेगी और अपने गुणों की मधुर महक से जन-जन के मन को आल्हादित करती रहेंगी।
___ आज आवश्यकता हैं उनके सद्गुणों की अपनाने की। यदि उनके सदगुण अपनाकर संघ समुत्कर्ष के मार्ग में आगे बढ़ सकें, स्नेह सद्भावना का संचार कर सके तो उनके प्रति सच्ची श्रद्धार्चना होगी। श्रद्धालुओं का दायित्व हैं कि संघ समुन्नति के लिए वे सर्वात्मना समर्पित हों।
समाज पर उपकार आपके प्रधान संपादकत्व में महासती पं. कानकंवरजी म.पं. चम्पाकंवर जी. महासती द्वय का स्मृति ग्रंथ निकल रहा है बड़ी प्रसन्नता की बात हैं। श्रमणी संघ में इनके स्वर्गवास से बड़ी कमी हुई हैं। महासतीजी ने जैन समाज पर बड़ा उपकार किया है। राजस्थान से लंबा विहार करके मद्रास तक पहुंचे और यहाँ भी धर्म का प्रचार किया।
वेपेरी, मद्रास
• उपाध्याय श्री केवल मुनि
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