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तरह खींच लेती थी । पराया भी सहज में अपना बन जाता था। वे आवश्यकतानुसार ही बोलती थी। वार्तालाप में कहीं पर भी अहंकार झलकता नहीं था । हल्के शब्दों का प्रयोग तो वे करना ही नहीं जानती थी। वे तौल-तौल कर बोलती और परिमित शब्दों का ही प्रयोग करती थी। उनके जीवन की तीसरी विशेषता थी कि उनका व्यवहार अत्यधिक मधुर और नम्र था। वे विदुषी थी पर अपने वैदुष्य का अहंकार उनके मन में नहीं था। बड़ों के साथ बहुत ही नम्रता के साथ पेश आती और छोटों के साथ भी इस प्रकार का व्यवहार करती कि छोटे उनके व्यवहार से आल्हादित हो जाते थे। चतुर्थ विशेषता यह थी कि उनका चेहरा चम्पा के फूल की तरह सदा खिला रहता था। अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में वे सदा समभाव में रहती थी ।
आज भले ही उनका भौतिक देह हमारे हमारे बीच न रहा हो किन्तु यशः शरीर से वे आज भी जीवित हैं और भविष्य में भी सदा जीवित रहेगी। उनके स्वर्गवास से एक ऐसी विदुषी साध्वी की क्षति हुई है जिसकी पूर्ति होना बहुत ही कठिन हैं ।
मारवाड़ की धरती में वे जन्मी, उनके जीवन का बाल्यकाल राजस्थान की धरती में विकसित हुआ । संयम साधना को स्वीकार करने के पश्चात् भारत के विविध अंचलों में पैदल परिभ्रमण कर उन्होंने जैन शासन की प्रबल प्रभावना की । जीवन की सान्ध्य-वेला में वे मद्रास विराजी । अपने प्रभावशाली प्रवचनों से जन-जन के मन में श्रद्धा की ज्योति प्रज्वलित की और अन्त में मद्रास की माटी पर ही समाधिपूर्वक आयु पूर्ण किया ।
भारत के तत्वदर्शी महर्षियों ने उसी जीवन को सार्थक माना हैं जो दोष विवर्जित हैं । दोषों की कालिमा से मुक्त हैं। निर्धूम ज्योति की तरह हैं। महासती चम्पाकुंवर जी ने अपने जीवन को इस तरह से जीया जिसमें किसी प्रकार का दाग न लगा । इसीलिए श्रद्धालुगण श्रद्धा से उत्प्रेरित होकर स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित करने जा रहे हैं । ग्रन्थ के माध्यम से असीम भावों को ससीम शब्दों में व्यक्त करने का लघु प्रयास किया जा रहा हैं। इस प्रयास में वे पूर्ण सफल बने, यही मंगल कामना हैं। भावना हैं।
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास हैं कि प्रस्तुत ग्रन्थ के माध्यम से इतिहास के वे अज्ञात पृष्ठ प्रकाश में आयेंगे जिससे जैन धर्म की प्रबल प्रभावना होगी।
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आचार्य श्री पद्मसागर सूरीश्वरजी म. सा.
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शुभकामना संदेश
महासती द्वय स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन होने जा रहा है, जानकर प्रसन्नता हुई । सम्पादन का कार्यभार आप जैसी सुयोग्य लेखिका को सौंपा गया है, वह प्रशंसनीय है। जैन परम्परा, इतिहास, दर्शन एवं तत्वज्ञान का विषय उसमें प्रस्तुत किया जायेगा जो विद्वानों के लिए उपयोगी बनेगा। इस ग्रन्थ संपादन के लिए मेरी शुभ कामना ।
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