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महापुराण
(३९.७.१५पचा-जणणेत्तई जहिं जि णिहित्तई तहि जि णिरारिज लगाई।
बुहयंदड तासु मुर्णिदहु को वण्णइ सणुअंगई ॥७॥
तं वदिवि र्षितइ सयक एंव किं पहा होति ण होति वेव । एहर सुरुषु णन वम्भहासु पुणु चवइ णिवह दरविर्य सियासु । मुँणि किं तुह किर धेरैगु थियड भणु किं जोवणु वणजोग्गु किया । तं सुणिषि भणइ मायारिसिंतु शिष्यत गवेगसहि पुण्णिमिदु । भरियल पुणु रित्त होइ राय सासय किं तिहि अभछाय । तणु घणु परियणु सिषिणयसमाणु तसथावरजीबहुं अभयदाणु। किजइ तहणसणि तवपवित्ति बुट्टत्तणि पुणु परियलाइ सत्ति। जर पसरद विहइ देहबंधु लोयणजुयलुल्लर होइ अंधु।
पडभट्टचेदछु गयरमणराउ वकणिहिं कोकिला इसिषि ताउ । १. बह थेक सो वि किं णिव्यियारि बहवेण जि पंहउ भयारि। जीविजाइ जहिं सो णिययवेसु तं भोयणु अं मुणिमुत्तसेसु । पत्ता-कि भन्ने पंखियगवे लोट असेसु गडिज्जइ ।।
विसत्तणु तं सुंकहत्तणु जेण ण णरइ पडिजइ ।।। धत्ता-सोगोंके नेत्र जहाँ भी पड़ते वे वहीं लगकर रह जाते। बुध-चन्द्र उस मुनीन्द्रके शरोरके अंगोंका वर्णन कौन कर सकता है ? ॥७||
उसकी वन्दना करके राजा सगर अपने मनमें विचार करता है, हो न हो ये क्या देव हैं ? यह मनुष्य का स्वरूप नहीं है। अपना योड़ा-सा मुंह खोलते हुए राजाने कहा, "हे मुनि, आप विरकक्यों हो गये? बताइए आपने-अपने यौवनको बनके योग्य क्यों बनाया?" यह सुनकर वह कपटी मुनि बोला, "क्या तुम पूर्णिमाके चन्द्र को नष्ट होते हुए नहीं देखते ? पहले चन्द्रमा भर जाता है, फिर खाली होता है, हे राजन्, क्या तुम बादलोंकी छायाको शाश्वत समझते हो ? तन, धन, और परिजन स्वप्नके समान है ? इसलिए वस और स्थावर जीवोंके लिए, अभयवान एवं यौवनमें तपकी प्रवृत्ति करनो चाहिए। बुढ़ापे में तो फिर शरीरको शक्ति नष्ट हो जाती है। बुढ़ापा फैलने लगता है । शरीरके बंध ढीले पड़ जाते हैं, दोनों नेत्रयुगल अन्धे हो जाते है। चेष्टाबोंसे भ्रष्ध और रमणरागसे रहित बूढ़ा आदमी युवतियोंके द्वारा हसकर तात पुकारा जाता है । वृद्ध आदमी दाध हो जाता है ( उसकी इन्द्रियचेतना नष्ट हो जाता है ) क्या वह भी निवृत्ति करनेवाला हो सकता है ? नपुंसकको तो देवने ही ब्रह्मचारी बना दिया। वहीं जीवित रहना चाहिए जो अपना देश है, भोजन यही हैं जो मुनिके आहारसे मचा हो।
पत्ता-बुद्धिके गवाले भव्पके द्वारा समस्त लोक क्यों प्रतारित किया जाता है ? पाण्डित्य और सुकयित्व वही है कि जिससे मनुष्य नरकमें नहीं पड़ता ।।८।। ८. १. A सरूस P सरूव । २. A P दरविसिमाम् । ३. A मुणि; P मुणे । ४. P वहरम् । ५. A वणमोग; P दणिजोगु । ६.AP सुर पहत्तणु।