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( २० ) प्रकार उन्हे “अनचाहत को सग" के हाथो तंग आकर समय से पहले ही संसार से कूच करने के लिये विवश होना पडा, उसका हाल पढ-सुनकरें किसी भी सहृदय को उनकी दयनीय भाग्यहीनता पर दुग्व और सवेदना हो सकती है। पर एक बात में वे सैकटो से बड़े ही सौभाग्यशाली सिद्ध हुए। गहन अन्धकार में भटकते को दीपक दीख गया ! अपार सागर में थके हुए पंछी को मस्तूल मिल गया | सत्यनारायण को मरने के बाद हो सही, चुपकी दाद देने वाला एक 'भारतीय हृदय', मुर्दा हड्डियों में जान डालनेवाला-'यश शरीर पर दया दिखानेवाला---एक 'मसीहा' मिल गया। जिसके कारण सत्यनारायण की स्वर्गीय, सतप्त आत्मा अपने सासारिक जीवन की समस्त दुखदायी दुर्घटनाओ को भूलकर सन्तोष की सॉस ले सकती है, और अन्यान्य परलोकवासी हिन्दी के वे अभागे कवि, लेखक जिनका नाम भी यह कृतघ्न और स्वार्थी संसार भूल गया, सत्यनारायण की इस खुशनसीबी पर रश्क कर सकते है, इस सौभाग्य-शीलिता को स्पृहा की दृष्टि से देख सकते है। यही नहीं, हिन्दी के अनेक जीवित लेखक और कवि भी, यदि उन्हें यह विश्वास हो जाय कि मुर्दो को जिंदा करनेवाला कोई ऐसा मसीहा' हमें भी मिल जायगा, तो सुखपूर्वक इस संसार से सदा के लिये विदा होने को, उस लेडी की तरह तैयार हो जाये, जिसने आगरे के "ताज" को देखकर अपने पति द्वारा यह पूछा जाने पर कि कहो इस अद्भुत इमारत के विषय में तुम्हारी क्या राय है ? उत्तर दिया था कि "मैं इसके सिवा कुछ नही कह सकती यदि आप मेरी कवर पर ऐसा ही स्मारक बनाये तो मैं आज ही मरने को तैयार हूँ।" मेरा मतलव इस जीवनी के लेखक 'भारतीय हृदय' पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी से है। चतुर्वेदीजी को पर-दुःखकातरता और दीनबन्धुता प्रसिद्ध है । प्रवासी भारतवासियों को राम-कहानी सुनाने मे जो काम आपने किया है वह बड़े-बड़े दिग्गज लीडरों से भी न बन पड़ा। ___अब उससे भी महत्त्व-पूर्ण कार्य में आपने हाथ लगाया है। अर्थात् साहित्य-सेवियों की जिनको राम कहानी प्रवासी भारतवासियों से कुछ