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गृह-जीवन ओ लीवर क्रोम्बैल ने अपने चित्रकार से कहा था--
"Paint me as I am. If you leave out the scars and wrinkles, I will not pay you a shilling."
अर्थात् “हमारा चित्र ज्यो का त्यो बनाओ। यदि तुमने चहरे की गूथो और सिकुडनों को छोड दिया तो हम तुम्हे एक शिलिङ्ग भी नही देने के।" यही वाक्य प्रत्येक चरित्र-लेखक के लिए आदर्श का काम कर सकता है । अपने चरित्र-नायक को कमजोरियो को दिखलाना उतना ही आवश्यक है जितना उसके गुणो का वर्णन करना । इसी उद्देश्य से सत्यनारायणजी के गृह-जीवन पर प्रकाश डालने का निश्चय किया गया। इसके अतिरिक्त एक बात और है । वह यह कि सत्यनारायणजी की मानवता को सर्वसाधारण के सम्मुख लाने के लिए ही यह जीवनी लिखी गई है। इसलिए यदि मै इस अध्याय को छोड़ दूं तो यह जीवनी बिलकुल अधूरी ही रह जायगो । अच्छे चित्र मे छाया और प्रकाश दोनो का प्रशंसनीय और यथोचित समिश्रण रहता है। यदि आप छाया भाग को छोड़ दें तो वह चित्र कभी असली चित्र नहीं कहा जा सकता । और फिर यदि सत्यनारायणजी के जीवन का यह अश छोड़ दिया जाय तो सर्वसाधारण की समझ मे उन पद्यों का महत्त्व कदापि नही आ सकता जो उन्होने अपने गृहजीवन से निराश और दुखी होने की दशा में लिखे थे ।
सत्यनारायणजी का विवाह ७ फरवरी सन् १९१६ को हुआ थाxx फरवरी को सत्यनारायणजी सपत्नीक धाँधूपुर लौटे। उस समय सत्यनारायणजी के हृदय मे क्या भाव थे इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन इतना हम अवश्य कह सकते है कि उनके हृदय में यह आशा अवश्य थो कि एक सुशिक्षित पत्नी के ससर्ग से उनका साहित्यमय जीवन और भी