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सत्यनारायणजी का व्यक्तित्व १६३ अपने एक अन्य मित्र को आपने लिखा थाप्रियतम कृपापत्र तव आयो । बड़े प्रेम से ताहि चूमि के अपने दृगनि लगायो ।। जब तुम जानत ब्रजभाषा को निज प्रानहुँ सो प्यारी । सब प्रकार सेवा के मोसो हो पूरन अधिकारी। हरिश्चन्द्र श्रीधर ग्रन्थनु मे प्यारी रुचि सो पागो। सत्य सनेह सहित नित नूतन भारतमन अनुरागो॥
रसिकतापूर्ण-स्वभाव सीधे-सादे और सरल होने पर भी सत्यनारायणजी खूब हँसते-हँसाते थे। मुहर्रमीपन तो उन्हे छू भी नही गया था । मजाक करने मे वे बड़े कुशल थे। सत्यनारायणजी को रस-भरे रसिये बहुत पसन्द थे। श्रीयुत सत्यभक्तजी ने अपने १८।११।१९ के पत्र मे सत्याग्रह आश्रम (साबरमती) से लिखा था--
"सत्यनारायणजी को रसियोका शौक तो था पर जहाँ तक मुझे मालूम है उन्हे विशेष रसिया याद न थे । एक दिन उन्होने भरतपुर की समिति मे मुझ से तथा अन्य कई व्यक्तियो से, जो वहाँ बैठे थे, इस विषय मे पूछा । मै तो इस सत्कार्य के करने का साहस न कर सका; पर एक दूसरे व्यक्ति ने कई रसियो के कुछ भाग सुनाकर कविरत्नजी को कुछ बानगी दिखलाई । उनमे से एक रसिये की टेक उन्हे विशेष पसन्द आई थी और उसे वे कभी-कभी गाया भी करते थे।
"-बछेरी डोले पीहर मे ।"
ब्रजमे-विशेषकर भरतपुर मे-रसियो का विशेष प्रचार है ग्रामीण लोग इन्हे प्रायः गाया करते है। सत्यनारायण को ग्रामीण आदमियो की संगति बहुत पसन्द थी। वे बड़े चाव और आग्रह के साथ उनसे रसिया सुना करते थे। एक बार आपने स्वयं एक सुरुचि-पूर्ण रसिया बनाकर अपने मित्रो को सुनाया था।