Book Title: Kaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Author(s): Banarsidas Chaturvedi
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

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Page 210
________________ १६८ प० सत्यनारायण कविरत्न सत्यनारायण और एण्ड्यूज़ सत्यनारायण की मृत्यु के बाद ६ वर्षों मे मुझे बीसियों साहित्यसेवियों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, लेकिन सत्यनारायण का-सा भोलापन मुझे केवल एक ही मनुष्य मे दोखा-- यानी भारत-भक्त-एड्यूज मे। सत्यनारायण कवि थे, मि० एंड्रयू ज़ भी कवि है। सत्यनारायण सासारिकता से कोसो दूर थे; मि० एंड्य ज को दुनयावीपन छू भी नही गया था। सत्यनारायण ने निस्स्वार्थ भाव से साहित्य-सेवा और समाज-सेवा की। मिस्टर एड्यू ज ने भी ऐसा ही किया । भोलेपन मे दोनो को सगे भाई समझना चाहिये । सत्यनारायण को धोखा देना आसान था। मुझे दोनो के ही संसर्ग मे आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ अत' मै कह सकता हूँ कि दूसरो को उत्साहित करने मे, किसी के अवगुण न देखकर उसके गुण ही गुण देखने मे, हृदय की कोमलता और प्रेमपूर्ण स्वभाव मे सत्यनारायण और एंड्रयू ज़ समान ही थे । सत्यनारायण के स्वर्गवास के १८-२० दिन बाद ही मुझे मिस्टर एड्रय ज से साक्षात् परिचय करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। मिस्टर एड्रय ज का निष्कपट और प्रेमपूर्ण व्यवहार देखकर मैंने सोचा"अहा । क्या ही अच्छा होता, सत्यनारायणजी जीवित होते और एंड्य ज़ से मिलते।" यदि मै चित्रकार होता तो सत्यनारायण और एड्यज" के हृदयालिंगन का चित्र खीचता और चित्र के नीचे लिखता--"पूर्व और पश्चिम का मिलन !" दुर्भाग्यवश सत्यनारायणजी की जीवित अवस्था में मैं उन्हें एंड्य ज साहब से नहीं मिला सका । पर सत्यनारायणजी का स्वर्गवास होने के पश्चात् मेरी प्रार्थना पर मि० ऐण्ड्य ज़ उनका वैलचित्र उद्घाटन करने फीरोजाबाद पधारे थे और यह जीवनचरित्र भी भारत-भक्ता एण्ड्रय ज़ के ही अर्पित किया गया है। मुझे विश्वास है कि सत्यनारायण को स्वर्गीय आत्मा इससे संतुष्ट होगी। चरित्र पर एक दृष्टि इस विषय में सत्यनारायणजी के मित्र श्रीयुत गुलाबराय' एम० ए.

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