Book Title: Kaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Author(s): Banarsidas Chaturvedi
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

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Page 226
________________ १८४ पं० सत्यनारायण कविरत्न 'निरत नागरी नेह रत रसिकन ढिग विश्राम । आयो तुव दरसन करन सत्यनरायन नाम ॥ रात-भर दर्शन की बड़ी अभिलाषा रही। प्रातःकाल आप फिर पधारे, तब से अन्तकाल तक उनकी कृपा मुझ पर बनी रही। इतना अधिक माधुर्य किसी भी आधुनिक कवि की रचना मे मैने नही पाया और न इतनी शीघ्रता से इतनी अच्छी कविता करते मैने और किसी को देखा है। x x x ब्रजभाषा का इतना प्रतिभाशाली कवि शीघ्र फिर कोई होगा इसमे सन्देह मालूम होता है। जब कभी आप खडीबोली की ओर झुकते थे मुझे बडा बुरा मालूम होता था। कारण यह था कि खड़ीबोली के अनेक तुकबन्द है लेकिन ब्रजभाषा के वे ही अकेले आधार और कर्णधार थे। श्रीयुत कन्नोमल एम० ए० जज (धौलपुर) "सत्यनारायणजी से मेरा खूब परिचय था। वह मुझ पर बड़ी कृपा करते थे । जब कभी नयी कविता तैयार करते तो मुझे सुना देते थे । कभीकभी तो सुनाने के लिये धौलपुर तक आने का कष्ट उठाते थे | पंडितजी बड़े सज्जन थे। उनकी सादगी पर सभी मोहित थे । उनकी कविता बड़ी सरस और मनोहर होती थी। उनके सुनाने का ढङ्ग निराला था । आप ऐसे शान्त स्वभाव और उदारचित्त थे कि कभी किसी की बात पर नाराज़ नहीं होते थे और न आपको कभी किसी की शिकायत करते सुना गया। आप सदैव प्रसन्नचित्त रहते थे और जिस समय किसी के समीप जाते तो उसको आनन्दमय कर देते थे। देहावसान के थोड़े दिन पहले पंडितजी एक प्रिय मित्र के साथ आये थे। "मालती-माधव' नाटक के अनुवाद करने मे उन्हे जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था उनका हाल कहते थे । मैं उस समय अग्रेजी के प्रसिद्धकवि शैली की Adonis नाम की कविता पढ रहा था, जो बड़ी प्रभावशाली और सारगभित है। मैने पंडितजी का ध्यान इस कविता की तरफ़ दिलाया और कहा कि यदि

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