Book Title: Kaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Author(s): Banarsidas Chaturvedi
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

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Page 224
________________ १८२ पं० सत्यनारायण कविरत्न बरसायो । पायो || 'नन्द' 'बिहारी' 'भूषण' भूषण साज सजायो । जिन पद पदमनि 'तुलसी' तुलसी दलहि चढायो || जिह कर 'पदमाकर' निजकर आरती उतारी। ता ब्रजपाणी देवी के तुम गुणी पुजारी ॥ सुन्दर सरल सुभाव सुधासम रस कपट कुटिलता-हीन प्रेम-पूरित मन हिन्दी हित निष्कपट कठिन शुभ काज प्रेरत हिन्दी प्रति नित चञ्चल चित्त हमारो ॥ शुचि आदर्श तुम्हारो काज हमारे सारें । हिन्दी प्रति हमहूँ निज तन मन धन सब वारें ॥ जगव्यापी जीवन-रण मह हम विजयी होवे | दुखित दीन बल - हीन छीन हिन्दी दुख खोवें ॥ तिहारो । श्रीरामनारायण चतुर्वेदी बी० ए० (प्रयाग) "मुझे सत्यनारायणजी का दर्शन बन्धुवर श्रीअयोध्याप्रसादजी को कृपा 1 से हुआ था | माईथान नामक मुहल्ले में एक बड़े योग्य महात्मा सारस्वत ब्राह्मण, जिनका नाम सोहनजी था, रहा करते थे । उनके पौत्र पं० ब्रजनाथ शर्मा सत्यनारायणजी के परम सुहृद थे । सोहनजी एक तरह के त्यागीजन थे । उनपर लोगों का बड़ा विश्वास था । आदमी गम्भीर और विचारवान थे । उनके दर्शन के हेतु मै प्रायः जाया करता था । वहाँ सत्यनारायणजी से भेंट हो जाया करती थी । सत्यनारायणजी का काव्य-प्रेम देखकर उनसे मेरी विशेष प्रीति उत्पन्न हो चली । जब कालेज से उनको अवकाश मिलता a कृपा किया करते थे और वार्तालाप का आनन्द रहता था । जब कभी वे आते, कविता - सम्बन्धी विषयो पर वार्ता करते थे । पं० श्रीधर पाठक के "ऊज ग्राम" और 'एकान्तवासी योगी' की जो प्रशंसा फ्रैडरिक पिनकाट ने की थी, उसपर हँसते थे और उनके निर्मित 'धन विनय' की बड़ाई करते थे । सत्यनारायणजी ने "उजड़ ग्राम" की अंग्रेजी पंक्तियों का थोड़ा-सा

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