________________
सत्यनारायणजी की कुछ स्मृतियाँ
१८१
इसका उन्होने गुजराती-अनुवाद भी कर दिया था जो बहुत कुछ अशुद्ध था। आपके जानने के लिये दो-चार शुद्ध चरण, जो मुझे याद है, लिखे. देता हूँ।
प्रिय प्रेमीला पूज्य आप सरदार छो" उच्च विचार सुसज्जित परम उदार छो। आज हमारी कीधो शुश्रूषा घणी । किन्तु न हम थी किचित तम सेवा बणी ॥
मुझको भी कविता से कुछ रुचि है और मैने सत्यनारायणजी से कई बार कविता सिखाने के लिए प्रार्थना की; किन्तु उन्होने मुझसे यही कहा कि कविता के कुचक्र मे पडने से कालिज की पढाई को बहुत क्षति पहुँचती है । वे अपने बी० ए० की परीक्षा मे अनुत्तीर्ण होने का यही कारण बताया करते थे। अधिक क्या लिखू ?
कविता कानन ललित कुजकी कोकिल प्यारी। कलित कठ की कल-कल कूक सुकवि मुदकारी ॥ ललित कबित को लता लहलही नित लहराती। रचना चारु विचित्र महक मंजुल महकाती ।। ब्रजभाषा मधु मधुर मत्त मधुकर सुखदाई। नवजीवन की जग मे जगमग ज्योति जगाई ॥ हिन्द भाल की बिन्दी हिन्दी मात दुलारे । काव्य रतन-गर्भा के शुचि कविरतन पियारे ॥ जाहि 'सूर' ने नवरस जलसों स्नान करायो। 'हरिश्चन्द्र' जहि रुचिकर चन्दन चारु लगायो। गग नीर को अर्घ्य देय जहि 'गङ्ग' रिझायो। जाकी षोडश पूजा करि केशव' सुख पायो"