Book Title: Kaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Author(s): Banarsidas Chaturvedi
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

View full book text
Previous | Next

Page 235
________________ सत्यनारायण की कुछ स्मृतियाँ १९३ से उनके विवाह के सम्बन्ध मे कुछ प्रश्न किये थे जिनका उत्तर उन्होने सन्तोष-प्रद दिया था । उस समय उनकी धर्मपत्नीजी को हिस्टीरिया के दौरे होते थे । पडितजी जानते थे कि मुझे इस बात से रज हुआ है कि उन्होने मेरा कहना नही माना, अत कई बार आगरे मे उन्होने मुझे इस विषय मे बहुत कुछ समझाया । मैने उनसे कहा कि मेरे हृदय में इस विषय मे उनके प्रति कुछ भी ग्लानि नही है; पर मेरे इस कहने से उन्हे सन्तोष नही हुआ । पडितजी ने मुझसे एक दिन गाँव चलने को कहा । मैं उस समय एक निजी कार्यवश उन्ही के बुलाने पर आगरे गया हुआ था। चौबे अयोध्याप्रसादजी के यहाँ दो दिन इस अवसर पर मै रहा। जब मैंने गाँव जाने से मना किया तो पडितजी ने कहा--"अवश्य ही तुम मुझसे रूठे हुए हो जो गॉव नही चलते ।" अन्त मे इस विषय मे मुझे केवल यही लिखना पड़ता है कि भावी प्रबल होने के कारण ही पंडितजी ने हम लोगो की सम्मति कि अवहेलना की । इस विषय मे मुझे कोई ग्लानि नही है । हाँ, पश्चात्ताप अवश्य है और रहेगा भी । मुझे कई एक ऐसे अवसरो का स्मरण है जब उन्हे कई सज्जनो की दो-एक बातो से क्षोभ हुआ था । परन्तु जब मैंने उनसे इस विषय मे कहा तथा उन सज्जनो की कड़ी आलोचना की तो उन्होने बडे मधुर तथा विनम्र शब्दो मे मुझे समझाया; पर मुझे उससे सन्तोष नही हुआ । परन्तु पंडितजी के उदार हृदय ने उन सज्जनो को तुरन्त क्षमा कर दिया और उन लोगो पर कभी यह प्रकट नही होने दिया कि उन लोगो ने पडितजी की आत्मा को दुःखित किया था । इस अवसर पर मै यह लिखे बिना नही रह सकता कि पंडितजी के मित्र कहलानेवाले कुछ सज्जनो ने अपनी सकीर्णता तथा क्षुद्रता का ऐसा परिचय दिया कि जिसका बडा भारी परोक्ष प्रभाव, पंडितजी पर पडा । अपने स्वर्गवास के कुछ मास पूर्व से ही उनको एक प्रकार का विराग-सा हो चला था । मैने अपने पत्रो में उन्हें इस विषय मे

Loading...

Page Navigation
1 ... 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251