Book Title: Kaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Author(s): Banarsidas Chaturvedi
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

View full book text
Previous | Next

Page 233
________________ सत्यनारायणजी की कुछ स्मृतियाँ १९१ ने डरते-डरते कलाकन्द और कलमी आम खाये । इसके पश्चात् दोपहर को भी बहुत कुछ डरते हुए भोजन किया । भोजन करने के पश्चात् वे सिर के दर्द की शिकायत करने लगे । मैंने उन्हे सो जाने की सलाह दी । प्रायः १ बजे पडितजी सो गये और ऐसे बेहोश सोये कि ५ बजे बाद उनकी नीद खुली । दमा होने के बाद उन्हे यह पहला ही अवसर था कि वे इस प्रकार बेहोश सोये हो । मुझे भी तथा उनको भी इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ । इस समय गज और ग्राह की लड़ाई समाप्त हो चुकी थी । पडितजी को जब यह मालूम हुआ कि सो जाने के कारण उन्होने गज और ग्राह की लड़ाई नही देख पाई तो उन्हे खेद हुआ, पर जब उन्हे समझाया गया कि वास्तव में आज भगवान ने उन्हे दमा रूपी ग्राह से उबारा है तो उन्हे बडी प्रसन्नता दुई । इसके बाद हम लोग गोबर्द्धन की परिक्रमा को गये और रात को ब्यालू करके सो गये । उस दिन रात को भी पडितजी ऐसे बेखबर सोये कि सबेरे ही उनकी आँख खुली । परमात्मा की कृपा से उनकी दमा की बीमारी दूर हो गई और पडितजी को यह विश्वास हो गया कि गिरिराज महाराज की कृपा से ही उन्हे आरोग्य प्राप्त हुआ इस 'घटना के पश्चात् सत्यनारायणजी प्रतिवर्ष आषाढ की पूर्णिमा पर गोबर्द्धन जाकर स्नान-दर्शन तथा परिक्रमा किया करते थे । अब कुछ मित्रो के आग्रह से सत्यनारायणजी विवाह के प्रश्न पर भी विचार करने लगे थे । आगरे मे गोस्वामी ब्रजनाथ शर्मा तथा चौबे अयोध्याप्रसादजी पाठक ने उन्हे इस विषय मे बहुत कुछ समझाया बुझाया और हर तरह पर अकाट्य तर्कों द्वारा उन्हे निर्वाक करना आरम्भ किया । उधर श्रीयुत मुकुन्दराम (पंडितजी के श्वसुर ) के चित्ताकर्षक पत्रो तथा कन्या के मनोमुग्धकारी गुणो के वर्णन ने पडितजी का भी चित्त स्थिर नही रहने दिया । पंडितजी की स्वाभाविक सरलता तथा निष्कपट व्यवहार ने अब उन्हे धोखा देना शुरू किया और वे इस समय डावांडोल अवस्था मे रहने लगे । उनकी शारीरिक अवस्था के विचार से पंडित बदरीनाथ भट्ट, पं० मयाशङ्कर दुबे तथा मैं उनके विवाह सम्बधी प्रस्ताव से असन्तुष्ट थे । 1

Loading...

Page Navigation
1 ... 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251