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श्री गांधी- स्तव
( १ ) .
जय जय सदगुन सदन अखिल भारत के प्यारे । जय जगमधि अनवधि कीरति कल विमल उज्यारे ॥ जयति भुवन- विख्यात सहन - प्रतिरोध सुसुरति । सज्जन समभ्रातृत्व शान्ति की सुखमय सूरति ॥ जय कर्मवीर त्यागी परम आम - त्याग - विकास कर | जय जस-सुगंधि - बितरन करन गाधी
मोहनदास वर ॥
( २ )
जय परकाज निबाहन कृतबन्दी गृह पावन । किन्तु मुदित मन वही भाव मजुल मनभावन । मातृभक्त जातीय भाव-रक्षण के नेमी । हिन्दी हिन्दू हिन्द देश के साँचे नेमी | निज रिपुही को अपराध नित छमत न कछु शंका धरत । नव नवनीत समान अस मृदुल भाव जग-हिय हरत ॥
( ३ )
जयति तनय अरु दार सकल परिवार मोह तजि । एकहि व्रत पावन साधारन ताहि रहे भजि ॥ जय स्वकार्यं तत्परतारत अरु सहनशील अति । उदाहरन करतव्य-परायनता के शुचिमति ॥