Book Title: Kaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Author(s): Banarsidas Chaturvedi
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

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Page 234
________________ १९२ गोबर्द्धन के निकट श्री स्वामी हरिचरणदासजी एक महात्मा रहते है । वह भी पडितजी से बडा प्रेम करते थे । पंडितजी जब गोबर्द्धन जाते तो उनके दर्शन अवश्य करते और अपनी कविता उन्हे सुनाया करते थे । एक बार मैने पंडितजी के सामने ही उनके विवाह सम्बन्धी विचार स्वामीजी पर प्रकट कर दिये । स्वामीजी ने भी उन्हे विवाह करने से मना किया । afa बड़ी प्रबल है । भोले-भाले सत्यनारायणजी बिमुग्ध हो गये और हम लोगो के बहुत कुछ समझाने पर भी न माने। इस पर असन्तुष्ट हो हम लोगो ने उनके विवाह मे न जाने की धमकी दी पर कुछ बस न चलते देख हम लोगो ने मौन धारण कर लिया । इस अवसर पर सत्यनारायणजी ने जिन शब्दो मे हम लोगो से क्षमा चाही वे बड़े ही हृदयग्राही तथा कारुणिक थे और हमको विवश हो, दुखित हृदय से, उन्हे विवाह कर लेने की अनुमति देनी पड़ी । पं० ० सत्यनारायण कविरत्न सत्यनारायणजी का विवाह हुआ; पर हम लोग अपने विचारानुकूल उसमें सम्मिलित नही हुए। मैने उन्हें जो बधाई सूचक तार भेजा था, वह यह है "Fair luck and fortune may on you attend it is the sincerest good wish of your loving friend" विवाह से लौटने पर पंडितजी ने जो पत्र मुझे भेजा था उसकी नकल यह है--- भैया, छमबहु सब अपराध हमारे । हम है सदा कृतज्ञ तुम्हारे ॥ "सत्य" इससे पश्चात् मैंने कभी विवाह सम्बन्धी विषय मे सत्यनाराणजी से खेद है कि, मैंने धाँधूपुर के भी दर्शन बहुत आग्रह करने पर मैंने पंडितजी बातचीत नहीं की तथा इसके बाद, नही किये। एक बार अपनी स्त्री के

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