Book Title: Kaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Author(s): Banarsidas Chaturvedi
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

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Page 218
________________ पं० सत्यनारायण कविरत्न श्रीयुत लोचनप्रसाद पांडेय ( बालपुर ) “आगरा पहुँचकर हम बड़ी कठिनाई से श्रीयुत कुंवर हनुमन्त सिंहजी रघुवंशी के निवासस्थल का पता लगा पाये । पहुँचते ही हमने प्रार्थना की कि कविरत्नजी के पुण्यदर्शन कराने की व्यवस्था होनी चाहिये । कुवरजी महोदय ने हमारी विनती पर उचित ध्यान दिया। रात्रि को कोई सात बजे कविरत्नजी ने हमारे डेरे पर पधारकर हमे कृतार्थ किया । दिव्य दर्शन हुए--- खूब दर्शन हुए । नेत्र शीतल और पवित्र हुए । उनकी सादगी, सरलता, सहृदयता और शीलता देखकर हम आश्चर्य और हर्ष - मुग्ध हो रहे । १७६ जब जबलपुर - सम्मेलन मे कविरत्नजी के दर्शन न हुए थे तब हम बड़े निराश हुए थे कि अब उनके कोकिलकलकंठ के कलित गान श्रवण का सुयोग प्राप्त करना कठिन है । पर वह हमारी निराशा जाती रही । किंचित काल सामान्य शिष्टाचार की बाते होती रही । फिर तो हमें अर्धनिमीलित नेत्र, चित्ताकर्षक मुखाकृति एवं हर्ष मुद्रा सयुक्त एक नितान्त हिन्दू वेशभूषाधर सज्जन की स्वर माधुरी ने मंत्रमुग्ध - सा बना दिया । उस विविध भाव परिपूरित उदात्त सरस काव्यामृत के सहित आल्हाददायिनी नाद लहरी हृदय एव कर्णकुहर को एक साथ झंकारित करती हुई अभूतपूर्व सुखानुभव कराने लगी । हमने अपने को धन्य एवं भाग्यवान जाना | स्वरचित सङ्गीत को ऐसे सुस्वर एव सफलता से गायन कर सकने की कला प्राप्त करने पर हमने कविरत्नजी को बधाई दो; क्योंकि यह बात किसी बिरले भाग्यधर के भाग्य में ही घटित होती है । अस्तु, दो घंटे का समय कहते-कहते बीत गया। हम बाहर फाटक तक कविरत्न को पहुँचाने गये । उनका वह अमृतमय मधुर ब्रजभाषा - भाषण तथा गाढ़तर स्नेहालिङ्गन आजन्म हम नहीं भूल सकते । x x x दूसरे दिन कोई ९ बजे हम लोगो का पुनर्मिलन हुआ । नाना प्रकार की साहित्य चर्चा हुई। खड़ी बोली, ब्रजभाषा, आधुनिक गद्य साहित्य, पद्य साहित्य सुरुचिपूर्ण सङ्गीत आदि पर

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