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सत्यनारायणजी का व्यक्तित्व
"भूपसिह भिनि भिनि भनन सितार बाजे,
बाजत तमूरा ताम ताम ताम तिनिनिनि ।"
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सत्यनारायण भूपसिहजी को 'गुरुदेव' कहा करते थे; क्योकि कविता करने मे सत्यनारायण ने उनसे कभी-कभी सहायता ली थी ।
सादगी और भोलापन
सत्यनारायण के व्यक्तित्व में उपरी ये दो बातें सबसे अधिक आकर्षक थी । फैशन के चक्कर मे वे कभी नही पडे । उन्हे ग्रामीण होने का गौरव था । उनके सहपाठी मित्र श्रीयुत दरबारीलाल जो लिखते है -
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" जब कभी मुझसे मिलते तो पहला प्रश्न यही होता था -- " मै अंग्रेजी पढा हुआ तो नही मालूम होता ?" इस पर मै पूछता -- "इस प्रश्न से आपका उद्देश्य क्या है ?" आप उत्तर देते -- " आज कल बहुत से पढ़ेलिखे 'जटिलमैन' होते जाते है; पर मै तो जटिलमैनी से बचने के लिये सामान्य वस्त्र पहनता और सादगी से रहता हूँ" ? गौरव की बात तो यह थी कि उनकी सरलता और सादगी मे कोई कृत्रिमता नही आने पाती थी । उनके हृदय का भोलापन और बस्त्रो की सादगी से सोने मे सुगंध का मेल हो गया था। कोरमकोर वस्त्रो की सादगावाले तो आजकल हजारों पाये जाते है, लेकिन उनमे सत्यनारायणजी की हार्दिक सरलता का शताश क्या, सहस्राश भी नही मिलेगा । बात यह है कि जैसे वे भीतर थे, वैसे ही ऊपर ।"
श्रीयुत बदरीनाथ भट्ट ने "सरस्वती" मे लिखा था-
“सत्यनारायणजी निरभिमानी इतने थे कि एक रात को इस नोट के लेखक के मकान पर टेसू के गीत गानेवाले गँवारो के साथ बेधडक बैठकर आप भी उसके सुर मे सुर मिलाकर और एक कान पर हाथ रख कर जोर जोर से तान अलापने लगे.
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