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पं० सत्यनारायण कविरत्न
इसमे परिश्रम करना एक अनधिकार चेष्टा ही समझी जायगी । × × × विशेष बात यही है । अपने आने का विचार छोड़दे ।”
इसके पूर्व ५ मई के पत्र मे श्रीमतीजी लिख चुकी थी
" इसमे कोई सन्देह नही कि जो बाते आप हम दोनो के ऊपर घटा रहे हैं वे खुद की ही लिखी नहीं; बल्कि ज्वालापुर के पत्र से ही लिखी हुई है । और ईश्वर से अनेक बार प्रार्थना है कि वे दुष्ट विध्वसकारी बनकर हमारी यातना को हरे और आपकी जबान मुबारिक हो और आपके लिखने के मुताबिक बाते ही पत्थर की लकीर हो । अगर आप हमारे पिताजी की कृपा से नेत्र - विहीन हो गये है तो मेरे लिये ईश्वर का न्याय है । x x x विवाह होने से जकड़ी गई हूँ सो मन तो स्वतंत्र है । मुझे भगवान का डर हैं।"
X X X
२७ मई को श्रीमतीजी ने लिखा था :
" आपका दूसरा पत्र मिला । उसका उत्तर आमोदिनी से न लिखाकर खुद ही लिखने की तकलीफ उठाती हूँ। मेरे यहाँ रहने मे अगर आपकी बदनामी है तो इसका मै कोई यत्न नही कर सकती । x x x x x मुझे तो इस दुनिया से कूच करना है । परन्तु आप अपना नफा-नुकसान सोचकर कोई कार्य्यं करे x x x x x मै तुम्हारे स्वभाव को जानती हूँ । परन्तु 'सनातनी इस बात के बहुत पाबन्द है- "ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी ।" आप भी तो उसी शिक्षा के माननेवाले है ? x x X x मेरी इच्छा को कोई नही रोक सकता । मै भी अब अपने को दुनिया की कोई दिन को अतिथि समझकर भविष्य के वियोगानल को सहन कर लूँगी; पर आप मुझसे कोई सुख उठाने की चेष्टा न करे; क्योकि मेरा जन्म आर्य्यं कुल मे हुआ है X ×।"
था -- ' ' अब मुझे पता लग गया है कि ये हैं । वहाँ पर मुझे गर्मी ज्यादः सताती है।
सत्यनारायणजी की गुरूबहन जानकीजी को सावित्री देवी ने लिखा सब मेरी जान लेने की फिक्र मे अगर मै वहाँ गर्मियो में रहेंगी