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पं० सत्यनारायण कविरत्न
श्रीमान् भाई बनारसीदासजी,
प्रणाम ।
यहा सकुशल आ पहुँचा । आपके अनुग्रह का इसे फल समझिये । आप लोगो को बड़ा कष्ट हुआ।
आपकी आज्ञानुसार टाइटिल के लिए दो पक्ति भेजता हूँ। पसन्द आने पर काम मे लाना । बहुत सोचा, किन्तु इसके सिवाय कुछ न सूझा
कोई मंत्र* हो कोई तंत्रा हो कैसा ही हो काज,
सत्याग्रह स्वराज ही केवल सबका एक इलाज । यहाँ प्लेग का बड़ा प्रकोप है। इसलिए अक्ल घास चरने चली गई है । क्षमा करिये और कृपा बनाये रखिये । श्रीमान् द्वारिका प्रसाद 'सेवक' से प्रणाम वा नमस्ते कह दीजिये । वरवे आदि प्रेमियों को प्रणाम ।
आपका
सत्यनारायण यह बात ध्यान देने योग्य है कि ब्रजभाषा-कवि की अन्तिम कविता खड़ी बोली मे हुई।
१५ अप्रैल सन् १९१८ की बात है। संध्या का समय था । कुछ झुटपुटा-सा हो रहा था। सत्यनारायणजी श्रीमती सावित्री देवीजी को, जो सात-आठ रोज पहले ज्वालापुर से धाँधूपुर आगई थी, "मालतीमाधव" के प्रूफ में से शिव की स्तुति सुना रहे थे । फिर उन्होने अपनी बह कविता सुनाई जो स्वामी रामतीर्थ के साथ रहते समय लिखी थी। तत्पश्चात् आपने पं० पद्मसिंह शर्मा को भेजी अपनी निम्नलिखित कविता सुनाई--
*मत्रि-मंडल शासन-पद्धति-- राजतंत्र या प्रजातंत्र