SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ पं० सत्यनारायण कविरत्न श्रीमान् भाई बनारसीदासजी, प्रणाम । यहा सकुशल आ पहुँचा । आपके अनुग्रह का इसे फल समझिये । आप लोगो को बड़ा कष्ट हुआ। आपकी आज्ञानुसार टाइटिल के लिए दो पक्ति भेजता हूँ। पसन्द आने पर काम मे लाना । बहुत सोचा, किन्तु इसके सिवाय कुछ न सूझा कोई मंत्र* हो कोई तंत्रा हो कैसा ही हो काज, सत्याग्रह स्वराज ही केवल सबका एक इलाज । यहाँ प्लेग का बड़ा प्रकोप है। इसलिए अक्ल घास चरने चली गई है । क्षमा करिये और कृपा बनाये रखिये । श्रीमान् द्वारिका प्रसाद 'सेवक' से प्रणाम वा नमस्ते कह दीजिये । वरवे आदि प्रेमियों को प्रणाम । आपका सत्यनारायण यह बात ध्यान देने योग्य है कि ब्रजभाषा-कवि की अन्तिम कविता खड़ी बोली मे हुई। १५ अप्रैल सन् १९१८ की बात है। संध्या का समय था । कुछ झुटपुटा-सा हो रहा था। सत्यनारायणजी श्रीमती सावित्री देवीजी को, जो सात-आठ रोज पहले ज्वालापुर से धाँधूपुर आगई थी, "मालतीमाधव" के प्रूफ में से शिव की स्तुति सुना रहे थे । फिर उन्होने अपनी बह कविता सुनाई जो स्वामी रामतीर्थ के साथ रहते समय लिखी थी। तत्पश्चात् आपने पं० पद्मसिंह शर्मा को भेजी अपनी निम्नलिखित कविता सुनाई-- *मत्रि-मंडल शासन-पद्धति-- राजतंत्र या प्रजातंत्र
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy