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विवाह
११५ विवाहोत्सव ७ फ़र्वरी सन् १९१६ को सत्यनारायणजी का विवाह हुआ।
"तुलसी गाय-बजाय के दियो काठ मे पाँव" विवाह के अवसर पर सत्यनारायणजी ने निम्नलिखित बचन दिये थे।
सूखे चने चबाकर भी हम हिन्दी को आराधेगे । हिन्दू हिन्द देश का मंगल तन, मन, धन से साधेगे । क्या हिन्दू क्या आर्यसमाजी, मुसलमान क्या ईसाई। भेद-भाव तज सदा गिनेगे हम सब को भाई-भाई ॥ उनका दू:ख दूर करने मे मानेगे अपना आनन्द । सदा कहेगे, जैसा चहिये, सच्ची बाते हम स्वच्छन्द ॥ कुरीतियो की मूल काटने हम आवाज उठावेगे।
शुद्ध रीतियो को सप्रेम हम हृदयासन बैठावेगे । इस प्रकार दो भिन्न-भिन्न प्रकृतियो का ससर्ग हुआ। कर्कशता सरलता के गले पड़ी। स्वच्छन्दता ने सहृदयता पर अधिकार जमाया। चंचलता ने सरलता का लाभ उठाया और विलासिता तथा भक्ति का मुकाबला हुआ। उस समय प्रेमपुर धाधूपुर का वायुमडल अशान्त बन गया और एक करुणोत्पादक ध्वनि हुई
"भयो क्यो अनचाहत को संग । अगले अध्याय मे इसी ध्वनि का अर्थ किया जायगा।