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पं० सत्यनारायण कविरत्न
बतलाया है, कार्य्यवश आगरे गये हुए थे । वहाँ, ताजगंज के निकट उनके एक नौकर ने तलको को देखा । यह सुनकर वे वृद्ध भी उसे देखने के लिये गये और वृद्ध महन्त बाबा रघुवरदास के यहाँ तलफो को देखा । तलफो के पास एक छोटा-सा सुन्दर बालक खेल रहा था । वृद्ध महाशय ने कहा"यह कौन है ?" तलको बोली - "यह मेरा लड़का सत्यनरायन है ।" यही सत्यनरायन हमारे चरित - नायक है ।
सत्यनारायण का जन्म माघ शुल्क १३ सोमवार संवत् १९३६ को, रात के दो बजे, सराय नामक ग्राम मे हुआ था । उस दिन सन् १८८० ई० की २४ फरवरी थी । दीन-हीन निस्सहाय इधर-उधर भटकनेवाली माता की करुणाजनक स्थिति का प्रभाव पुत्र पर पडे बिना कैसे रह सकता था । इसीलिये सत्यनारायण के जीवन के जिस भाग पर हम दृष्टि डालते है, वही करुणाजनक दीख पड़ता है ।
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सत्यनारायणजी का जन्म माता की करुणोत्पादक स्थिति में हुआ था । उनकी बाल्यावस्था उसी अवस्था में कटी। बढ़े होने पर कई वर्षो तक श्वास से पीड़ित होने के कारण उनकी दशा और भी करुणोत्पादक बन गई । सम्भवत इन्ही कारणो से उनकी रुचि करुणारस की ओर प्रवृत्त हो गई थी । करुणा रस-प्रधान उत्तररामचरित का अनुवाद उन्होने बड़ी सफलतापूर्वक किया । उनका अशान्तिमय गृह-जीवन करुणोत्पादक था और अन्तत उनकी मृत्यु मे तो करुणारस की पराकाष्ठा ही हो गई । अस्तु, इन बातो को तो पाठक आगे चलकर पढ़ेंगे यहा तो हमें जाटो के छोटे-छोटे बालकों के साथ खेलनेवाले सत्यनारायण का वृत्तान्त लिखना है । सत्यनारायण के लिए यह बड़े सौभाग्य की बात थी कि उन्हे बाबा रघुवरदासजी का आश्रय मिल गया । महन्त होने पर भी बाबा रघुबर दास को लिखने-पढने का बड़ा शौक था । उन्होंने सैकड़ों हस्तलिखित पुस्तके संग्रह को थीं । दुर्भाग्यवश ये बहुमूल्य पुस्तकें अब मन्दिर की धूल मे पड़ी हुई वर्षा, शीत, आतप और दीमक का आनन्द अनुभव कर रही है । खैर, बाबा रघुबरदासजी हिन्दी - कविता के बड़े प्रेमी थे और उन्होंने