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प० सत्यनारायण कविरत्न पता नही सरकार करै क्यो जान बूझ आना-कानी । प्यारे हिन्दू और मुसलमा ईसाई हिन्दुस्तानी ।। क्या बूढ़े क्या बडे मर्द क्या ओरत क्या प्यारे बच्चे। जिनको अपना देश पियारा दयावान है जो सच्चे ।। जिनके उर मनुष्यता देवी की पावन मूरति प्यारी। प्रथा, सोचिये कैसी है यह क्रूर लोम हर्षणकारी । जो अपने निष्ठुर कामो से निष्ठूरता के कतरै कान । बोल गई “ची' हृदय-हीनता लख के हृदय-हीन सामान ।। इज्जत जो सर्वस्व हमारी वह भी लुटती जाती है। होती शर्म देख शर्मिन्दा तुम्हे शर्म नहि आती है ।। कहते छाती फटती है तुम वने हुए ऐसे अनजान । तुम्हे न करुणा आती सुनकर भ्राताओं का कप्ट महान ।। बहिन तुम्हारी बेबस होकर निज मर्यादा खोती है । हाय परम असहाय बिचारी विलख विलख कर रोती है । जो भविष्य की उज्ज्वलकारी छोटी छोटी है सन्तान । "नही कही की रही" कीजिये इससे विपदा का अनुमान ॥ तन मन धन सर्वस्व निछावर इनके दुख पर कर दीजे । एक प्राण हो एक कठ म इसका आन्दोलन कीजै ।। जिससे मिट जावै यह जड़ मे घृणित प्रथा सत्यानासी । तभी कहाओगे इस जग मे तुम सच्चे भारतवासी ।। चिरंजीव एण्डूज हमारे सरोजिनी पोलक गतिमान । जिनकी करुणामयी कथा सुन द्रवता है कठोर पापान ॥
इज्जत से भी रुपया पैसा अगर बड़ा सरकार । निडर कहै हम इस विचार को तो शतशः धिक्कार । ऋषियो के कुलीन पूतो को कुली बनाया जाता है ।। रण मे उन्हे भेजते आगा-पीछा सोचा जाता है ।