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प० सत्यनारायण कविरत्न
अनुवाद की कुछ बानगी देखिये ---
"जवै झुकति हेमन्त - राति कारी कजरारी । अरु उत्तर की सोरी सीरी चलति वियारी || बरफीले ठौरनु सो करकस कठोर आई । उठि लिरियन को सदन देर लो परत सुनाई ॥ जबै इकोसी परी झोपरी के चहु ओरी । सनसनाति आधो आजर पाजर झकझोरी ॥
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जबै महोच्छव औसर पर पै करवे मिहमानी । काढत पीपहि खोलि नसीली सुरा पुरानी ॥ धरत उजेरे काज बडो सो लम्प उजारी । करत भूँजि अखरोट बिबिध भोजन तैयारी ॥ जबै घेर अगिहाने कों मिलि सबरे बैठत । बूढ़ेनु सो बतरात ज्वान निज मोछ उमेठत ॥ बुनत बोइया ओर टुकनिया जब कुमारी । युवक बनावत धनुही जीय चुरावनहारी ॥
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प्रमुदित अरु प्रेमाश्रु बहावत अति रुचि मानी । सुनत सुनावत सकल अजहुँ यहि वीर कहानी ॥ सत्यधीर होरेशस जिहि विधि बल दरसाई । लियो विमल प्राचीन समय मे सेतु रखाई ॥"
'मालतीमाधव'
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यह भी भवभूति की इसी नाम की पुस्तक का अनुवाद है । इस अनुवाद के प्रारम्भ करने के सम्बन्ध में स्वयं सत्यनारायणजी ने लिखा था--- “सन् १९१३ के जाडे र्के दिनों मे रुग्ण होकर चिकित्सा के लिए कुछ दिन