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प० सत्यनारायण कविरत्न
सत्यनारायणजी की इस पुस्तक के विषय मे, हिन्दी-सम्पादको ओर समालोचको को सम्मतियाँ यहाँ उद्धृत की जाती है
साहित्याचार्यप० चन्द्रशेखर शास्त्री (सम्मेलन-पत्रिका मे)--
"हिन्दी मे इस' ग्रन्थ के और भी अनुवाद हो चुके है, जिनमे दो-तीन मैंने भी देखे है। उन सब मे कविरत्नजी का अनुवाद कई कारणों से उत्कृष्ट कहा जा सकता है। एक तो इस अनुवाद की कविता सरस और मनोहर है; और दूसरे इसके साथ ग्रन्थकार की लिखी एक वृहत् भूमिका जोड़ दी
__ भूमिका मे बहुत-सी बाते केवल हिन्दी जानने वालो के लिये नयी है। इस सुप्रयत्न के लिए हम कविरत्नजी को और साथ ही इस ग्रन्थ के प्रकाशक फीरोजाबाद के 'भारती-भवन' को धन्यवाद देते है ।"
आलोचना के अत मे साहित्याचार्यजी ने लिखा था--
"मेरी समझ मे अनुवादक मूल ग्रन्थकार के सर्वथा अधीन रहते है, क्योकि वे अनुवादक है। उन्हें केवल भाषा-परिवर्तन करने का अधिकार है। मूल ग्रन्थकार के भाव को इधर-उधर करना अनुवादको के अधिकार के बाहर की बात है। इस अनुवाद मे ऐसी स्वाधीनता देखी जाती है ।" इसके दो एक उदाहरण देकर समालोचक महाशय ने लिखा था--'परन्तु इन उदाहरणो से यदि कोई यह समझे कि पुस्तक की सरसता मे किसी प्रकार की त्रुटि आ गई है, सो बात नहीं है। कहीं-कही अनुवादक ने भवभूति के भाव को रूपान्तर में ग्रहण किया है, अवश्य, तथापि पुस्तक पढने लायक और उपादेय है।
श्रीमान् पं० श्रीधर पाठक--''आपने जो पं० सत्यनारायणजी कृत 'उत्तर' राम-चरित का भाषा-अनुवाद मुझको समालोचनार्थ दिया था, उसको अवलोकन कर चित्त अति सन्तुष्ट हुआ। यह एक नवीन कवि की उत्कृष्ट प्रतिभा और सहृदयता का सौभाग्य संदर्भ, आशा पूर्ण परिचय है । आशा है, हिन्दी-रसिकगण इसका रसास्वादन कर सुखी होगे।