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विवाह
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हाँ, इस सम्बन्ध से कही बढकर हम और आप उस पवित्र प्रेम-पाश मे प्रतिबद्ध है जो प्रत्येक मनुष्य को, यदि वह सञ्चा मनुष्य है, स्वदेश तथा स्वबान्धवो की सेवा करने के लिये विवश करता है। हमारा आपका उद्देश्य एक है। इस कारण आपके मर्वोपयोगी पुनीत कार्य को अग्रसर करने के लिये यह शरीर सर्वदा समुपस्थित है। इसे आप अपना ही समझें । ____ यदि कभी आना हुआ तो आपकी पुण्यमयी सस्था तथा आपके पुण्यं दर्शन से अपने को अवश्य कृतार्थ करूँगा। पूज्य पं० पद्मसिहजी को प्रणाम् ।
विनीत
सत्यनारायण इसके उत्तर मे श्रीयुत मुकुन्दरामजी ने १६ अक्टूबर को लिखा था--- "मन्यवर महोदयजी,
नमस्कार आपका १३ । १० । १५ का पत्र प्राप्त हुआ। उत्तर मे निवेदन है कि हम आपकी इस कृपा के लिये अत्यन्त अनुगृहीत है जो आपने हमारे तथा हमारी संस्था के लिये दर्शाई है।
हमने आपके भरोसे पर अभी तक दूसरे किसी वर की तालाश नही की थी और कन्या बडी सगझदार है । आपके गुणो पर मुग्ध होकर उसने आपके साथ ही पत्र-व्यवहार कराया था। अब आपने स्पष्ट उत्तर दे दिया है। हम आपकी सुजनता की प्रशंसा करते है; परन्तु साथ मे यह भी निवेदन करते है कि क्या वास्तव में स्वास्थ्य-दशा वर्षा ऋतु मे गिर गई है या पूर्ववत् ही है । साधारण ज्वर को चिन्ता नही करनी चाहिये। और यदि आप किसी अन्य कारण से नही करना चाहते हो तो दूसरी बात है । हो भी सूचित करना चाहिये-हमे भूषण-वस्त्रादि की आवश्यकता न समझे। हम तो आपकी सुजनता से प्रसन्न है । इलाज हम आपका यहाँ करा देवेगे।