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विवाह
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प्रतीत हुआ है कि आपने किन्हीं अन्य कारणों से निषेध किया है। अतः हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि मार्ग-व्ययादि हम देवेंगे । एक बार आप हमारे यहाँ आकर दर्शन देने की कृपा करें। परिवार, स्त्रियाँ आदि आपको देखना चाहती हैं । हम आपके साथ ही मानसिक संकल्प देर से कर चुके हैं। कन्या भी आपके गुणों से मुग्ध होकर आपको ही अधिक पसन्द करती है । कृपया आप एक दिन को अवश्य पधारें। आने की सूचना तार द्वारा दे देवें।
भवदीय
मुकुन्दराम शर्मा इस पत्र को पाकर सत्यनारायणजी ज्वालापुर गये और ज्वालापुर से लौटने के पश्चात् सत्यनारायणजी ने निम्नलिखित पत्र २८।१०।१५ को पं० पद्मसिंहजी शर्मा के पास भेजा--
आगरा
२८।१०।१५ पूज्य प्रिय पंडितजी,
पद सुधि रहि-रहि आवत तव सँग की रंग-रलियाँ। नय नयनाभिराम श्यामल बपु-शैल, गंग, तट गलियाँ।। रस-बतरानि बिचारत बिकसत रोम-रोम की कलियाँ।
सत गरीब को फेरि देउ मन भली न ये छलबलियाँ ।। आ गया--शरीर आगया ! मन वहाँ ही आपकी सेवा में छोड़ आया हूँ। आपके दरबार में यहाँ का कोई प्रतिनिधि चाहिये न ?
कुछ इज़हार लिये जाने पर मुकदमा फिर मुलतबी हो गया । यहाँ अलीगढ़ की ट्रेन से लगभग १॥ या २ बजे आ पहुंचा।
गाड़ी में बैठा जब मैं आ रहा था तब झंझट में फंसे हुए मैंने दूर से देखा कि पं० रामगोपालजी महाविद्यालय के फाटक पर गाड़ी की ओर