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हृदय-तरङ्ग
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'हृदय-तरङ्ग 'हृदय-तरग' का नामकरण सत्यनाराणजी कई वर्ष पहले कर चुके थे; बल्कि उसका सम्पादन करके वे उसे भरतपुर के अधिकारी श्री जगन्नाथ दासजी विशारद के यहाँ रख आये थे। उसके दो फार्म प्रकाशित भी हो गये थे । पुस्तक पूरी न छपने पायी थी कि किसी ने उसे उड़ा दिया और आज तक उसका पता नही लगा। सत्यनारायणजी ने इन्दौर मे मुझसे कहा था--"मेरी अनेक कोमल रचनाएँ 'हृदय-तरग' के साथ ही विलीन हो गयी |" इसका उन्हे बड़ा दु ख था। एक पत्र मे उन्होने मुझे लिखा था--"यदि आप उचित समझे तो अधिकारी जगन्नाथदासजी विशारद विरक्त-मन्दिर, भरतपुर से अथवा "चित्रमय-जगत्" के भूत-पूर्व सम्पादक से लिखा-पढी करे । मुझे तो वे ठीक ठीक उत्तर नहीं देते।" तदनुसार मैने दोनो सज्जनो से लिखा-पढी की। ____ श्रीयुत भालेरावजी का तो उत्तर आ गया कि 'हृदय-तरग' मेरे पास नही ; लेकिन अधिकारीजी ने मेरे तीस-पैतीस पत्रो मे से केवल एक का उत्तर देने की कृपा की। अधिकारीजी को आशङ्का थी कि 'हृदय-तरङ्ग' भालेरावजी ले गये ओर भालेराव जी 'पितृ-हत्या' और 'गो-हत्या जैसी घोर शपथ लेकर कहते है कि मै 'हृदय तरङ्ग' नहीं लाया । भालेरावजी का ख्याल है कि "हृदय-तरङ्ग" श्रीयुत शालग्राम वर्मा के पास रही और वर्माजी का विश्वास है कि वह अधिकारीजी या भालेरावजी के पास से खो गई । सत्यनारायणजी द्वारा सम्पादित 'हृदय-तरङ्ग' कहाँ गयी और किसके पास है, यह तो परमात्मा ही जाने , परन्तु इतना हम भी अनुमान कर सकते है कि वह किसी 'हृदयहीन' के हाथ पड गयी । जो हो।
सत्यनाराणजी के स्वर्गवास के कई महीने पहले मैने अपने मनोरजन के लिये उनकी कविताओ का संग्रह करना प्रारम्भ कर दिया था। जब सत्यनारायणजी इन्दौर पधारे तो मैने यह सग्रह उन्हे सशोधनार्थ दिया था। मेरे इस सग्रह मे सत्यनारायणजी ने अपनी कई रचनाएँ लिख दी थी।