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दुखियो की पुकार
से आई है ।
विमल हमारी राजभक्ति जो चली सदा कैसी अच्छी कदर हुई बस इसके लिये बधाई है || खोकर मान प्रान का रखना पल भर को भी जहॅ दुशवार । कौन सहेगा पाँच साल तक ऐसा भीषण अत्याचार ||
होता एक हुजूर ।
रहता
हमसे तो गुलाम ही अच्छा जिसका ऐरे गैरे-पचकल्यानी के चगुल से भरा हुआ है अनन्त सागर उसमे हमे डुबा तोपो के मुहरो से हमको बिना उज्र उडवा चाहे जैसी नृशंसता भी अपने हाथो से कीजे । कुली- प्रथा का किन्तु अन्त कर उभय लोक मे यश लीजे ॥ नहिँ उलाहना अगर किया नहि जो कोई पूरा वादा । जाती हुई बचा लीजे इस आर्य जाति की मर्यादा || तीस कोटि के दंड मुड का जो तुमने पाया अधिकार । होगे प्रभु के अवसि सामने बुरे भले के जिम्मेदार || अनुचित दया न हमको चहिए, चहिए केवल न्याय उदार । उसकी ही हम भीख माँगते सविनय तुमसे बारम्बार || कबर किसी की मे नहिं सोना राजा को, जानें ससार । पक्षपात को छोड़ न्याय का करना चहिये पुण्य प्रचार ॥ ब्रिटेन | तुम्हारी न्याय-नीति मे है हमको अतिशय विश्वास । गौरव निज प्राचीन सोचकर कीजे अब तो पूरी आस ।। न हो आपका नाम कलकित, रक्षा भी हो सभी प्रकार । सत्य दीन दुखियो की बस है हाथ जोड़कर यही पुकार ॥
दूर ॥
दीजे ।
दीजे ||
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इन कविताओ के अतिरिक्त सत्यनारायणजी ने अन्य अवसरो पर भी कविताएँ रची थी । वैष्णव महासभा के चतुर्थ सनाढ्य महामण्डल के २२, वैद्यक सम्मेलन के तृतीय, चतुर्वेदी सम्मेलन के प्रथम और हिन्दूसम्मेलन के प्रथम अधिवेशनो पर भी पद्य रचना की थी । महायुद्ध के