________________
७२
प० सत्यनारायण कविरत्न
कर्मयोग आचार्य आर्य आदर्श उजागर । निर्मल न्याय निकुञ्ज पुञ्ज करुणा के सागर ।। सुदृढ सिहगढ के सजीव-ध्वज-धर्म धुरधर । अद्भुत अनुकरणीय प्रेम के प्रकृत पुरन्दर । प्राणोपम राष्ट्र प्रतापवर, अघ त्रिताप हर सुरसरी। जय जन-सत्ता के छत्रपति, महाराष्ट्र कुल-केसरी ।।
मर्यादा-पूरण स्वतत्रता-प्रियता प्यारी । प्रकृति मधुर मृदु मजु सरलता देखि तिहारी। रोम रोम कृत-कृत्य भयो यह जन्म कृतारथ ।
तव दर्शन करि लोचन पायो लाहु यथारथ ॥ चित होत परम गदगद मुदित, जबै बिचारत कृत्य तुव । जय जीवन-जग-जहाज के, जगमगात जातीय ध्रुव ।।
धन्य धन्य यह देश जहाँ तुम देशभक्त अस । जननी जन्मभूमि तन मन धन जीवन सर्वस ।। धन्य आगरा नगर धन्य यह के बासी जन । चरण कमल तब दरसि परसिभये जो पुनीत मन ।।
सत विनय यही जगदीश सो, होंय मनोरथ तव सफल । हम हिन्दी पावे विश्व मे, स्वत्व मानवोचित सकल ।
कुली-प्रथा के विरोध में पद्य-रचना ३ मार्च सन् १९१७ को कुली-प्रथा के विरुद्ध आन्दोलन करने के लिये एक सभा सेण्टजोन्स कालेज में, प्रिंसिपल डेविस साहब के सभापतित्व मे हुई थी। उस अवसर पर सत्यनारायणजी ने निम्नलिखित कविता पढी थी।