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जन्म और बाल्यावस्था
अलीगढ जिले की तहसील सिकन्दराराऊ मे जरैरा नामक एक ग्राम है। वहाँ एक निर्धन सनाढ्य ब्राह्मण खुशालीराम रहा करते थे। खुशालीराम के चार पुत्र और दो पुत्रियाँ थी। इनको पाँचवी सन्तान का नाम तलफो था । तलफो को खुशालीराम ने भली भॉति पढाया-लिखाया था। वह रामायण अच्छी तरह पढ और समझ सकती थी। उसकी चौपाई पढने की शैली बडी आकर्षक थी। तलफो का विवाह कोयल (अलीगढ) के श्रीयुत' दुबे के साथ कुछ ले-देकर दिया गया । दुबेजी का घर धन-धान्य-सम्पन्न था। वे प्रौढ़ अवस्था के थे। उनकी यह दूसरी शादी थी। तलफो की उम्र १४-१५ वर्ष की थी। निर्धन माता-पिता की सन्तान तलफो एक धनाढ्य वंश की बधू हुई अत उसका नाम रानी सर्दारकुंवरि रख दिया गया। दुर्भाग्यवश दुबेजी विवाह के थोड़े दिनों बाद ही स्वर्गवासी हो गये। सर्दारकुंवरि और उनकी सास मे, जायदाद के ऊपर, मुकद्दमेबाजी हुई, जिसमे सर्दारकुंवरि हार गयी। इस हार की वजह से उन्हें बड़ी-बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। दीन-हीन होकर असहाय अवस्था मे उन्हे घर से निकल जाना पड़ा। वे सराय नामक ग्राम में रही और वही उनके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। वे पढी-लिखी थी अतएव उन्होने जारखी, कोटला इत्यादि स्थानो मे पढाने-लिखाने का काम किया। फीरोजाबाद मे भी कुछ दिन रही। तदनन्तर उन्होने ताजगंज के निकटवर्ती ग्रामों मे लड़कियो को पढ़ाना शुरू किया और अन्त तक यही काम करती रहीं।
एक बार जरैरा ग्राम के एक वृद्धपुरुष, जिन्होने यह सब' बृत्तान्त