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प० सत्यनारायण कविरत्न । हिन्दू जाति भलाई के हित भूपति घर-घर जावे । उज्ज्वल कर्मयोग को ऐसो उदाहरण कह पावें ॥ भारत को सौभाग्य-सूर्य वह निरखहु चिलकत आवत । नसि अज्ञान सघन तम रासहि ज्ञान उजास जगावत ॥ जहाँ स्वयं सम्राट जार्जपचम विद्या के प्रेमी । का तुम कियो प्रजा बनि उनकी जो न होह अस नेमी ॥ वही सकल यह देस सुहावन पावन गुन-गन आलय । वही गगन-चुम्बित भारत को उज्ज्वल उच्च हिमालय ॥ गगा यमुना वही वही पूर्वज ऋषि मुनि के नामा। धर्म-धीरता दान-वीरता वही अटल अभिरामा । 4 कछु को तुम कछु देखियत निज-निज धुनि मे फूले । रैनि अविद्या अँधियारी मे प्रियपूर्वज पथ भले ।। चेत-हेत तुम्हरे ही यह सब रच्यो अमित आयोजन । जानहु निज कर्तव्य सकल तुम याको यही प्रयोजन ॥ कठिन परीक्षा समय आज है हिन्दू जाति तिहारो। कह लो या मे चहिय सफलता उर निज तनिक विचारो॥ शत्र-मित्र सब ठाढ़े देखत चलत तिहारी स्वासा । कितु जबैलो स्वासा तब लो तुव जीवन की आसा ।। वरणाश्रम अरु जाति-पॉति को भेद सकल विसराई। हिन्दु-विश्व-विद्यालय की तुम सब मिलि करहु सहाई ॥ निज भविष्य की भाग्य-डोरि अपने ही कर मे धारहु । चाहे तुमहि सँवारहु याको चाहे तुमहि बिगारहु ।। अर्थ धर्म अरु काम मोक्ष को शिक्षा अनुपम द्वारा । जाही सो जग आत्मशक्ति की जगमग ज्योति अपारा ॥ जामे सब संजोग देहु मिल यहि सों त्यागि विवादा। हिन्दू-हिन्दी-हिन्द देश को जो चाहो मर्यादा ।।