________________
५८
प० सत्यनारायण कविरत्न
तुव जस विमल कहाँ लो गावें ।
जब जब आवति सुरति तिहारी नयन नीर भरि आवैं ।। यदि किचित नहि भूलो
बहु बरस सो कठिन जतन करि यह भारत- जातीय समिति जो कर न सकी अजहू लौ ॥ सो निज भेद-भाव तजि, आरज जन जीवन धन प्यारी । देश धरम मर्यादा थापी तुम सब जन हितकारी ॥ हिन्दू और अहिन्दू अन्तर, यदि वे भारतवासी ।
मेटि मुदित तजि स्वार्थ सकलबिधि तुम निज सुमति प्रकासी ॥ सहन शक्ति अरु स्वावलम्ब को उदाहरन दरसायो । लखि व आतम - त्याग मनोहर सब ससार लजायो ॥ अन्य कठोर जाति इक ऊपर दूजे देस बिरानो । सकल भाति असहाय तऊ तुव धीरज नाहि हिरानी ॥ तन मन धन सरबस सुत दारा सबको मोह विहायो । केवल भारत जन नैसर्गिक सत्व सुभग अपनायो । तप्तस्वर्ण सम जगमगात नित राखत दृढ विश्वासा | श्रीनारायण पूर्ण करे तुव प्रेम भरी प्रिय आसा ||
उसी समय 'एक सभासद भारतीभवन फीरोजाबाद' के नाम से 'पति-पत्नी-सवाद, शीर्षक एक कविता भी आपने 'प्रताप' मे प्रकाशित कराई थी । वह यह है
पति-पत्नी-संवाद
नाथ । अब चलिये अपने देश ।
देख यहाँ की क्रूर नीति को होता हृदय कलेश ॥ निभ सकता नहि यहाँ हमारा पति पत्नी सम्बन्ध | बच्चों के भी पारिस बनने मे पड़ता प्रतिबन्ध ||