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। पं० सत्यनारायण कविरत्न
परम पुण्य मति पूर्ण आप यश सो अनुरागत । प्रियतम लजपतिराय सुखद सब बिधि तव स्वागत ॥
हिन्दू-विश्वविद्यालय के लिये अपील जब माननीय ५० मदनमोहन मालवीय श्रीमान् दरभगा नरेश के साथ हिन्दू-यूनीवसिटी के लिये चन्दा करने के लिये आगरा आये तब श्री राजा कुशलपाल सिह के सभापतित्व में उनके स्वागतार्थ सभा हुई थी। उस सभा मे उपस्थित होने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ था। जब सभा समाप्त हो गई तो माननीय मालवीयजी की मोटरकार के पास मिर्जई पहने हुए एक नवयुवक खडा था, और मालवीयजी उससे बातचीत कर रहे थे। इसी नवयुवक ने मधुर स्वर से उस सभा मे एक कविता सुनाई थी। __ उस समय मेरे साथी किसी विद्यार्थी ने--मैं भी उन दिनो नवी कक्षा मे पढता था-मुझसे कहा था--'ये ही सत्यनारायण है।" इस प्रकार पहले पहल तब मैने दूर से सत्यनारायणजी के दर्शन किये थे। उस समय क्या मालूम था कि आगे चलकर मुझे इस सरल सोम्यमूर्ति की जीवनी लिखनी पडेगी। अस्तु, सत्यनारायणजी की उक्त कविता यहाँ उद्धृत की जाती है।
स्वागत यह सुख समय पुण्यमय, जो उछाह अति पागे । आरज विविध कला कौशल कल भल विद्या अनुरागे । पर-उपकार सुब्रत सुचि दीक्षित परम प्रेम रंग राचे। जननी जन्मभूमि के नित नव सब बिधि सेवक साँचे ॥ तजि सुख दुख को ध्यान मान बिन हिन्दुन को सिरताजा। परमोदार पुण्य मूरति श्रीदरभंगा-महाराजा ॥ सरल हृदय' सहृदय सुख पोहन अखिल दुरित दल दूषन । श्री सद्गुन गन — सदन मदन मोहन मालवि कुल-भूषन ।