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समाज-सेवा और साहित्य-सेवा
__ (सन् १९१०--१९१६ फ़रवरी) सत्यनारायणजी ने मार्च सन् १९१० मे कालेज छोड दिया था। इसके पश्चात् वे केवल आठ वर्ष जीवित रहे । उनका विवाह फरवरी सन् १९१६ मे हुआ था। विवाहोत्तर काल को वे अपनी Literary death अर्थात् “साहित्यिक मृत्यु" कहा करते थे। इस प्रकार सत्यनारायण की प्रतिभा को विकसित होने के लिये केवल ६ वर्ष का समय मिला, अर्थात् मार्च १९१० से फरवरी १९१६ तक। इन ६ वर्षों मे सत्यनारायणजी ने जिस निःस्वार्थ भाव ओर जिस लगन से समाज तथा साहित्य की सेवा की उसी का यहाँ सक्षिप्त वर्णन किया जाएगा। यह पहले ही कहा जा चुका हे कि सन् १९०५ के स्वदेशी आन्दोलन से उन्होने अपनी कविता मे देशभक्ति के भाव भरने का प्रयत्न किया था। उस समय के पश्चात् की अधिकाश कविताओ से यह बात स्पष्टतया प्रकट होती है । सन् १९०७ ई० मे लाला लाजपतरायजी के आगरे आने पर सत्यनारायण ने उनके स्वागत में निम्नलिखित पद्य बनाये थे--
जय जय जग विख्यात बिमल भारत भुवि भूषण । जय स्वदेश-अनुरक्त भक्त नित अरि कुल दूषण ॥ जय निशङ्क निकलङ्क-पूर्ण भारत शशाङ्क वर । जय नीतिज्ञ सुजान वीर गम्भीर धीर धर ॥ जयति परीक्षित सुबरण सुन्दर सुलभ सुहावन । सकल गुप्त मन सुमन प्रेम गुन गहन गुहावन ।। अग्रवाल-प्रिय अग्रवाल सौरभ सरसावन । कार्य शक्तिमयि देशभक्ति रस चहुँ 'बरसावन ।।