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पं० सत्यनारायण कविरत्न जव' मथुरा मे मै पहले पहल सत्यनारायणजी से मिला तो मै बढी खातिरी से पेश आया। यह बात सत्यनारायण को अच्छी नहीं लगी । गले से मिलकर आपने कहा--"भैया मैं तो तेरौ वही पङ्गा हूँ"।
कभी-कभी सत्यनारायणजी बढे प्रेम के साथ कहा करते थे----"कवि कुन्दनलाल मिढाखुरवारी" । श्रीयुत् मशी कुन्दनलालजी (मुख्याध्यापक टाउन स्कूल मिढाखुर) ने ही सत्यनारायण को हिन्दी-मिडिल को परीक्षा दिलवाई थी। मुशीजी अपने २९।७।१८ के पत्र मे लिखते है --
___ "अनुमान से २३ वर्ष व्यतीत हुए होगे कि सत्यनारायण यहाँ, मिढाखुर, मुझसे विद्याध्ययन करने के लिए आये थे। उस समय उनकी अवस्था १३ वर्ष की थी। बाल्यावस्था से ही वे सुशील स्वभाव तथा तीव्र बुद्धि कहे जाते थे। परिश्रमी अधिक थे और सहपाठियों की भलाई में रहते थे। अध्यापको के शुभचिन्तक थे । विद्यार्थी-धर्म मे कोई श्रुटि नहीं करते थे। सदाचारी होने मे कोई सन्देह नही था । अहकार का लेश भी नहीं जान पड़ता था । बाल्यावस्था से ही सत्यनारायण मनातनधर्मावलम्बी कहे जाते थे । उनकी कवित्व-शक्ति अच्छी थी। मैंने कई विद्यानुरागी पुरुषो को उनकी प्रशंसा करते हुए सुना है । आरम्भकाल मे कविता की ओर उनका ध्यान यही से आकर्षित हुआ । श्रीमान् जो लिखते है कि 'सत्यनारायण ने आपमें कविता करना सीखा' सो यह लिग्नते हुए मुझे सङ्कोच यों है कि प्रथम तो मै कविता के अङ्गों से अनभिज्ञ हूँ, द्वितीय कोई वृहद् पिंगल ग्रन्थ देखने का अवसर मुझे प्राप्त नहीं हुआ। गणादि तक का ज्ञान भी मुझे पूर्ण रूप से नहीं है । छन्दों के लक्षण, काव्य के नव रस मात्र मैंने औरों से श्रवण किये है। काव्य का जानना, करना कठिन है। जब काव्य-शास्त्र में मेरी यह अनभिज्ञता है तो पडित सत्यनारायण की योग्यता के विषय मे मै क्या लिख सकता हूँ । सत्यनारायण वर्तमान समय के 'कवियों' में कविरल कहे जाने योग्य थे। उन्होंने मेरे यहाँ शिक्षा पाई थी, इस कारण उनको विशेष प्रशसा करना मुझे उचित नही जान पड़ता । कैसे दुर्भाग्य और खेद की बात