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अभिनन्दन पत्र
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जानेवाला 'हुआ कि वहाँ के विद्यार्थियो ने सत्यनारायण को आ घेरा और उनसे अभिनन्दन पत्र तय्यार करा लिया । सत्यनारायण जी का अभिनन्दनीय व्यक्ति से परिचय या सम्बन्ध है या नही, इस बात की कोई आवश्यकता न समझी जाती थी । सत्यनारायणजी भी ऐसे सीधे-सादे आदमी थे कि किसी अपरिचित अध्यापक की बिदाई के उपलक्ष्य मे उनसे कविता बनवाना कोई कठिन काम न था । विद्यार्थी जानते थे कि पडितजी गुड की मडी मे, चतुर्वेदी अयोध्याप्रसाद पाठक के यहाँ मिलते है । बस, सीधे वही पहुँचते थे ओर अभिनन्दन पत्र तैयार करा कर ही लौटते थे। इस प्रकार विद्यार्थीजीवन मे और उसके बाद भी आगरे-भर मे 'स्वागत - कविता' और 'अभिनन्दन पत्र' तैयार करना सत्यनारायण का एक निश्चित कार्य्यं हो गया था । इस प्रकार के अभिनन्दन पत्रो को यहाँ स्थानाभाव से उद्धृत नही किया जा सकता। इन सब अभिनन्दनो मे एक से ही भाव है, इसलिये उदाहरण के लिये एक-दो का दे देना काफी होगा । प्रिन्सिपल हेयोर्थवेट at निम्नलिखित अभिनन्दन पत्र दिया गया था ।
श्री हरि अभिनन्दन-पत्र
सहायक ।
श्रीयुत प्रियतम परम सरल हिय सद्गुन आगर । सदय निरन्तर धीर धर्ममय नितनय- नागर ॥ कर्मनिष्ठ अति शिष्ट विमल जस चहुँ सरसावन । सुठि रचना-चातुर्य्यं सुभग उर मोद जगावन ॥ दीन हीन छात्रनु के साँचे सुखद श्री जे० पी० हेथोर्थवेट सुन्दर सब लायक ॥ उज्ज्वल उच्च उदारनीति सब मृदुल सुहाई । मुखों कहत बने न मुदित मन ही मन भाई || कौन कौन से तुम्हरे गुन यह कोउ गिनावै । ' तुमसे हो बस तुमहि' अन्य कोउ शब्द न भावै ॥