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हास्यप्रियता
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आतुर सो दादुर उछरि दुर दुर देत
दीरघ अवाज वाज गाज मतवाली है। सीतल प्रभात-बात खात हरखात गात,
धोये-नोये पातनु की बात ही निराली है।
इस कविता को बनाने और बार-बार पढने मे सत्यनारायणजी इतने मग्न होगये रहे कि उन्हे अपनी परीक्षा का ध्यान तक न रहा । परीक्षा मे बैठे तो सही किन्तु कविता की धुन मे इतने मस्त थे कि पर्चा गडबड हो गया और इम्तहान मे पास न हो पाये। ___ जब सत्यनारायणजी नवी कक्षा मे पढते थे तो बाइबिल के इम्तहान मे एक सवाल आया था, जिसमें कई पदो की व्याख्या कराई गई थी। उनमे एक पद था--"Render unto Caesar what belongs to caesar and render unto God what belongs to God" सत्यनारायणजी ने कुल परचा छोड हिन्दू-शास्त्रानुकूल इसी पद की व्याख्या मे कापी भर डाली। Mr. B. W. Thomas, जो परीक्षक थे, कापी वापिस करते समय बोले--
"सत्यनारायण तुम एक नई बाइबिल बना डालो !" मन मौजी ही तो ठहरे। श्रीयुत सत्यभक्तजी ने “विद्यार्थी' मे निम्नलिखित घटना लिखी थी--
हास्यप्रियता "हास्य-प्रिय आप बड़े भारी थे । सदा प्रफुल्लित रहते थे। शायद ही कभी क्रुद्ध होते हो। होटे-बडे वरानरवाले सब के साथ आप हास्यपूर्ण मधुर वार्तालाप करते थे। और तो क्या, गुरुजनो से भी आप अनेक समय हँसी कर बैठते थे। आपकी सुनाई हुई एक घटना हमे याद है । धाँधूपुर गॉव तीन साढ़े तीन मील दूर होने के कारण आप को कालेज पहुँचने मे प्राय. विलम्ब हो जाया करता था। एक दिन प्रोफेसर ने नाराज होकर