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पं० सत्यनारायण कविरत्न
विद्यार्थी जीवन को विशेष बाते प्रकृति - प्रेम
बाल्यावस्था से ही सत्यनारायण बडे प्रकृति-प्रेमी थे । सौन्दर्य उनके मनको मुग्ध करता था । बचपन मे यदि कोई कुरूप स्त्री-पुरुष उन्हें गोद मे लेता तो वे खिन्न होजाते ओर सुरूप स्त्री-पुरुषो के पास जाने मे प्रसन्न रहते थे ।
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सत्यनारायणजी के प्रकृति-प्रेम के कारण ही विद्यार्थी जीवन में एक दुर्घटना होगई । वर्षा ऋतु मे पानी बरसने के बाद वृक्षो के निर्मल पत्तो का सौन्दर्य उनके चित्त को बहुत आकर्षित करता था । अपने कई पद्यो मे उन्होने इसका वर्णन भी किया है ।
पावस- प्रमोद मे आपने लिखा है '
"धोये धोये पात तरुन के हरमावत मन, नेक झकोरत डार झरत अनगिनत अम्बुकन ।" भ्रमर-दूत मे लिखते है -
"अलबेली कहु बेलि दुमन सो लिपटि सुहाई । धोये धोये पातन की अनुपम कमनाई" ||
एफ० ए० की परीक्षा थी । Poetry (पद्य) का पर्चा था । वर्षा हो गई थी। तड़के अपनी अटरिया को खिड़की खोलकर पढने बैठे तो नीम, इमली इत्यादि वृक्षो के स्वच्छ पत्ते दिखलाई पडे । बस फिर क्या था । पढना छोड़कर निम्नलिखित कविता रच डाली-
"पीन की सनक घन सघन ठनक चारु,
चचला चिलकि सतदेव चहूँ चाली है । बादर की कड़ी झड़ी लगी चहुँधा सो वर,
बोलत पपैया "पिय पिय" प्रन पाली है |