________________
पं० सत्यनारायण कविरत्न .
जंगबहादुर* के रोग के हेतु प्रभू तुम कैसे रूठ रहे। जब तुम नाथ उबार्यो करी कूँ नाना दुख सहे । गरुड़ त्यागि तुम आय बचायो नंगे पॉय बहे ।। जगबहादुर दास तुम्हारो ता. ताप गहे । भवज रोग चहुँ ओर सो आकर निशिदिन तनहि दहे। जब-जब वह दुख पावत तब-तब रामहिराम कहे। सत्यनारायण बेगि बचावो क्यो यह ठाठ ठये ।।
कहाँ कूँ सिधारे हो हे करतार । गनिका कीस गृद्ध गज तारे दये तिन सकट टार ।। जंगबहादुर तुम्हरो सेवक रोग गह्यो यहि बार । ताप कष्टदा अतिहि चढति है अब की लगाओ पार॥ ताके मन की सकल कामना पूरण करि सुग्घकार। मौन भये कस बोलत नाही सब जग सिरजन हार॥ अधिक कृपा करिये तुम स्वामी । कहा कहूं बारम्बार।
सत्यनरायन आस तुम्हारी अब की बेर उबार ॥ जब सत्यनारायण चतुर्थ कक्षा मे थे, तब उन्होंने “फोर्थक्लास मे पास होने की यह बिनती" लिखी थी .
हे भगवती कृपा करो तुम भक्त आपनि जानि के । पर्चा करौ सब ठीक 'रानी-पुत्र' निज को जानिकें। इम्तिहान रूपी काल ने अब मातु घेर्यो आय के। मधवा उबार्यो मातु तैने वेग तेग चलायके ॥
*बाबू कल्याण सिंह भार्गव प्लीडर के कुटुम्ब के एक लड़के का नाम । सत्यनारायणजी की माता का नाम 'रानी सरदारकुँवरि' था।