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विद्यार्थी - जीवन
सब जनन को तुम काज करिबे मातु जग मे अवतरी । कहा खोट अब मैने कियो मम बेर कूं देरी करी ॥ हे मातु रसना बैठिके तुम बुद्धि की शुद्धी करौ । सब काज करिकें ठीक माता मोर भव बाधा हरौ ॥
एक बार फिर इसी "भवबाधा " " इग्तिहान रूपी काल" से घेरे जाने पर सत्यनारायण ने अपने उद्धार की यह प्रार्थना की थी :
उद्धरो ।
करो ॥
करो ।
" पैशाचवत् इम्तिहान से हे जननि मोको आधि-व्याधिन मेटिके अस बुद्धि की शुद्धी उत्तीर्ण करि मोकूँ सदा औ सफल मन- काजन इतरिक्त जाके और माता दुख सब मेरे वरदान दे मोहि मातु करिके कृपा तुव सेवक कहै । जो भक्ति तुम्हरे चरण की मम हृदय में व्यापी रहै ॥"
हरो ॥
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उन्ही दिनो किसी पत्र मे 'भारत - निवासी की' समस्या छपी थी । सत्यनारायण ने उसकी पूर्ति इस प्रकार की थी
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दिन दिन देश-दशा होति जाति दूबरी है,
याको दुख देखि सुधिहू न रहे सांसी की ॥ कृपन भये हो किथो मोन को गहे हो नाथ 1.
कृपाऊ न आवै यह बात नाहै हाँसी की ॥ दयासिन्धु दया करो, बिने उर माझ धरो,
सामिग्री न जोरो स्वामि फेरि तुम फॉसी की ॥ बेर-बेर टेर-टेर जीभ हू सिथिल भई,
अब सुधि लीजिये जू
भारत - निवासी की ॥
सत्यनारायणजी की उन दिनो की कविता के कुछ नमूने यहाँ दिये
जाते है ।