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________________ विद्यार्थी - जीवन सब जनन को तुम काज करिबे मातु जग मे अवतरी । कहा खोट अब मैने कियो मम बेर कूं देरी करी ॥ हे मातु रसना बैठिके तुम बुद्धि की शुद्धी करौ । सब काज करिकें ठीक माता मोर भव बाधा हरौ ॥ एक बार फिर इसी "भवबाधा " " इग्तिहान रूपी काल" से घेरे जाने पर सत्यनारायण ने अपने उद्धार की यह प्रार्थना की थी : उद्धरो । करो ॥ करो । " पैशाचवत् इम्तिहान से हे जननि मोको आधि-व्याधिन मेटिके अस बुद्धि की शुद्धी उत्तीर्ण करि मोकूँ सदा औ सफल मन- काजन इतरिक्त जाके और माता दुख सब मेरे वरदान दे मोहि मातु करिके कृपा तुव सेवक कहै । जो भक्ति तुम्हरे चरण की मम हृदय में व्यापी रहै ॥" हरो ॥ १७ उन्ही दिनो किसी पत्र मे 'भारत - निवासी की' समस्या छपी थी । सत्यनारायण ने उसकी पूर्ति इस प्रकार की थी --- दिन दिन देश-दशा होति जाति दूबरी है, याको दुख देखि सुधिहू न रहे सांसी की ॥ कृपन भये हो किथो मोन को गहे हो नाथ 1. कृपाऊ न आवै यह बात नाहै हाँसी की ॥ दयासिन्धु दया करो, बिने उर माझ धरो, सामिग्री न जोरो स्वामि फेरि तुम फॉसी की ॥ बेर-बेर टेर-टेर जीभ हू सिथिल भई, अब सुधि लीजिये जू भारत - निवासी की ॥ सत्यनारायणजी की उन दिनो की कविता के कुछ नमूने यहाँ दिये जाते है ।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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